मिट्टी में मिट्टी होने के सिवाय – ओम नागर

1
कौन हो तुम ?
किसान हूँ साहेब
क्या चाहिए
कुछ नही थोड़ा…
थोड़ा क्या
पूरा बोलों
यही
कि थोड़ी कर्ज माफ़ी
और थोड़ा दाम बढ़ जाएँ
हमारे भी बच्चे हैं साहेब
क्या खिलाएँगे
क्यूँ बच्चे मुझसे पूछकर
पैदा किए थे
किसने कहा था तुमसे
कि खेती करो
किसान-‘कौन कहेगा साहेब
पीढिय़ाँ हो गई
यही सब करते
और कर भी क्या सकता हूँ
मिट्टी में मिट्टी
होने के सिवाय।’
2
अरे तुम फिर आ गएँ !
और यह कमीज़ पर ख़ून कैसा
कुछ नहीं साहेब
आपके सिपाहियों ने बंदूक चला दी
बहोत ख़ून खऱाबा हो गया उधर
हम भी क्या करें साहेब
मरता मरे भी
और मरने से पहले लड़े भी नहीं
अब हमसे न होगा
हमारा छोटा-सा निवेदन
तुम्हारे मोटे दीमाग में अच्छे-से
बिठा लीजिए साहेब
तुम साहेब !
काहे हमारी आत्मा दुखाते हो बिना बात
आप भी कुछ कहो न मेम साहब
सुनो! साहेब
फ़सल का दाम बढ़ा दीजिए
या फिऱ हमे राज का
आखिऱी फ़ैसला बता दीजिए
मरता क्या न करता मेम साहब
होना भी क्या हैं-
‘मिट्टी में मिट्टी होने के सिवाय।’
सम्पर्क-9460677638,8003945548

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