कथीर के सपने – ओम नागर

ओम नागर
तुमने कहा
हरित क्रांंति ला रहें है हम
हमने घड़े में बीज अवेरना छोड़ दिया
तुमने कहा
अब क्रान्ति सफ़ेद रँग में जायेगी द्वारे-द्वारे
हमने देशी गायों के झुण्ड ताड़ दिए
सदा के लिए सूने
तुमने कहा
बदरंग और बदबूदार न होगा खाद का रँग
हमने सफ़ेद ज़हर से भर दिए खेतों के कंठ
तुमने कहा
खड़ी फसल में लगे रोग की होगी जाँच
हमने मुट्ठियों-मिट्टी रख दी
ग्राम सेवक की हथेली पर
तुमने कहा
गेंहूँ घर में पेट जितने ही बोओं
एक पानी की सरसों बोओं
दो पानी का धनिया
हमने बिना पानी की फसलों से मोड़ लिया मुँह
तुमने कहा
लहसुन से बदल जाएँगी हमारी कि़स्मत
हमने बिन बिचारे लगा दी सफ़ेद कुएँ में छलाँग
तुम अब कह रहें हो
किस ने कहा था रखों सफ़ेद सोने से ऐसी दीवानगी
हमारे सारे सपने कथीर हो गए
यूँ न जाने कितने वज़ीर पर वज़ीर हो गए
हम तो दिन ब दिन किसानी फ़कीर हो गए।

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