बस उड़ती जाँऊ

राजेश कुमार कश्यप
गीत
पंख फैलाऊं और
आसमां में बस उड़ती जाऊं,
बंधन सारे तोड़ दूं, मैं हाथ न आऊं,
मैं उड़ती जाऊं, बस उड़ती जाऊं,
उड़ती जांऊं, बस उड़ती जाऊं ।
पिंजरों में मैं, अब न रहूंगी,
जकड़न भी मैं, अब न सहूंगी
अब न सहूँगी
पिंजरे सारे तोड़ के,
जकड़न सारी तोड़ के,
फुर्ररररर हो जाऊं,
बस उड़ती जाऊं…..
बादलों के मैदानों में खेल के आऊं
और इन्द्रधनुष के रंगों में घुलमिल जाँऊ
बस उड़ती जाऊं,…..
डरी-डरी, मैं सहमी-सहमी अब न रहूंगी,
चीखूंगी, चिल्लाऊंगी, अब चुप न रहूंगी,
अब न सहूंगी
डरना अब मैं छोड़ के
चुप्पी अब मैं तोड़ के
थोड़ा गुर्राऊंउउउ,
बस उड़ती जाऊं…
आंधियों-तूफानों से मैं टकराऊं,
मैं न घबराऊं,
और बारिशों की बूंदों में, मैं भीग के आऊं
बस उड़ती जाऊं….
और पंछियों के झुंड में, मैं घुलमिल जाऊं,
बातें करूं हवाओं से , मैं चहचहाऊं,
बस उड़ती जाऊं..
मैं गीत सुनाऊं,
बस उड़ती जाऊं
मैं लहलहाऊं,
बस उड़ती जाऊं,
मैं हाथ न आऊं,
बस उड़ती जाऊं……
सम्पर्क-गांव बाहरी, तहसील थानेसर, जिला कुरुक्षेत्र, मो. 9466436692

Leave a reply

Loading Next Post...
Sign In/Sign Up Sidebar Search Add a link / post
Popular Now
Loading

Signing-in 3 seconds...

Signing-up 3 seconds...