जाट कहवै, सुण जाटणी – प्रदीप नील वशिष्ठ

एक बात ने कई सालों से मुझे परेशान कर रखा था। और वह शर्म की बात यह कि अपने  हरियाणा में हरियाणवी बोलने वाले को नाक-भौं चढ़ा कर इस नजऱ से देखा जाता है कि इस बेचारे को हिंदी या अंग्रेजी तो आती ही नहीं होगी। और यह या तो कम पढ़ा लिखा होगा या फिर पक्का ही  किसी देहात का हाळी-पाळी।

बस तभी एक दिन मैंने फैसला किया कि बीस साल से अंग्रेजी पढ़ा रहा, एम. ए. , एम. फिल. डिग्री वाला लेक्चरर अपनी बोली  में उपन्यास लिखेगा। मित्र समझाने लगे – अंग्रेजी में लिखो, पूरे ग्लोब पर पहचान बनेगी।  हिंदी में लिखोगे तो भी बहुत दूर तक जाओगे। हरियाणवी में लिख कर हरियाणा में ही सिमट कर रह जाओगे। और फिर तुम्हारी यह किताब खरीदेगा कौन क्योंकि हरियाणा में तो वैसे भी कोई किताब पढऩे का रिवाज़ ही नहीं है।  लेकिन मैं यह साबित करने की जिद्द पकड़े हुए था कि हरियाणवी सिर्फ अनपढ़ों की बोली नहीं है, बल्कि हम सबकी मां-बोली है।

‘जाट कहवै , सुण जाटणी’ छप कर आया तो मैं बहुत डरा हुआ था कि ऐसा न हो कि  यह  किताब धरी की धरी रह जाए और मेरे हरियाणवी-प्रेम की बेइज़्ज़ती हो जाए।  लेकिन, यह  इतनी तेजी से लोकप्रिय  हुआ कि मैं बहुत हैरान था। अभिभूत हूं, यह देख कर कि आम पाठक इसे सीने से लगाए हुए हैं।आत्मकथ्य                                                          

विघ्नहरण, मंगलकरण, गणपति जी महाराज
पैहला न्यौंदा आपनै, सदा राखियो मेरी लाज

यो दोहा तीन बै बोल कै दादी कहाणी सरू करदी ” एक गधयां का व्यापारी था।

सन अठारा सौ सतावन कै जमानै की दादी के जाणै अक इन दो लाइनां तै तो गणेस जी आजकाल अमीरां अर मंत्रियां के बाळकां के ब्याह कराया करैं । अर इतनी खुबात बी जद करैं, जद छप्पन तो पकवान बण रे हों अर ब्या कै कार्ड पै उनकी फोटू छपरी हो । दळिया खाण आळी दादी कै न्योंदै पै गणेस जी कड़ै आंदे होंगे? सरकारी ड्यूटी सी समझ के आंदे बी होंगे तो म्हारी बांदर सेना कै आगै हथियार गेर देंदे होंगे । क्यूंक दादी की कहाणी की पैहली ए लाइन पै हाम व्याकरण की तलवार ताण के खड़े हो जांदे ” दादी, हरियाणै म्है रैहके अंगरेज़णी क्यूं पाक्कै ? एक गधयां का व्यापारी कोनी होंदा, गधयां का एक व्यापारी होया करै।’’

  इब्ब हम बालकां नै के बेरा अक कहाणी असल म्है तो कहाणी सुणाणियै की लाड्डो बेट्टी होया करै। अर कौण मां-बाब्बू या बात सैहन करैंगे अक कोए उनकी बेट्टी नै छेड़ दे ? बस फेर तै दादी छोह म्है आ के फाळी बरगी लाल हो ज्यांदी। पर या बी खास ए बात थी अक हमनै तो किम्मे नी कैंहदी अर म्हारी मां नै गाळ बकण लाग ज्यांदी। हाम बी दादी की रग्ग दाबणा सीखगे। राजै की गरीब प्रजा की तरियां हामै चुपचुपाले दादी के पां दाबण लाग ज्यांदे। फेर मड़ी सी हाण पाच्छै याद करांदे ” दादी तों कहाणी सुणावै थी अक गधयां का एक…।’’

कोए साऊकार मूळ का ब्याज़ लेणा भूलै तो दादी आपणी लाइन भूलै ! दादी की कहाणी उस्से लाइन तै फेर सरू होंदी  हां तो भाई, एक गधयां का व्यापारी था ।

  हाम आपणी छात्ती म्है मक्का सा मार कै बैठ ज्यांदे। अर दादी कहाणी की रेल सी चला देंदी ‘रे भाई, इब्ब गधे होंगे तो लीद का मींह सा तो बरसै ए बरसैगा। अर या बी सुण ल्यो अक लीद होग्गी तै व्यापारी तै सूंगदे-सूंगदे भाजे आवैंगे। पर कोए व्यापारी उसकै के मांगै? क्यूंक आपणला व्यापारी तै व्यापारियां का बी बाब्बू था।

  तै बेटा, जद च्यारूं कानी लीदमलीद होगी तै व्यापारी इस लीद नै सुका-पीस कै मसालयां म्है मिलाके बेचण लागग्या। अर भगवान की करणी इसी होइ अक रेहडिय़ां पै मुद्धे होकै चाट-पकौड़ी खाण की शौकीन लुगाइयां अर राण्डिए माणसां नैं यो मसाला इस्सा सुआद लाग्या अक गिणे-चुने दिनां म्है ए उसकी कोठी पिस्सयां तै ठाड्डी भरगी।

  हामे भूंडा सा मूंह बणा के कैंहदे,  दादी, कान कतरण नै तन्नै आपणे ए पोते पाए ! हाथी की हो तो चलो मान बी ल्यां, इब्ब बता गध्यां की लीद तै बी कदे पीस्से मिलया करैं…

दादी आपणे दोनूं कानां कै हाथ लाके छांत कानी देखके सरू हो जांदी, ‘ए लीलै तंबू आळे भोलेनाथ, ए मेरे रामजी! इन माट्टी के डळयां नै इतनी सी अकल तो जरूर दिए अक यें भोळे बाळक आपणै जींदे जी गध्यां नै निरे ए गधे नी समझैं। ए मेरे दाता, इन घपड़चौथां नै न्यूं बी सिखाइये अक पिस्से रूखां पै कोनी लागदे, यें तो गधयां की लीद म्है तिरदे फिरया करैं। आछया बाळको, इब्ब न्यूं बताओ अक भोत पीस्से हों तो आदमी खुस होगा कै नीं?’’

दादी हाथां नै खूब च्यौड़े करके कहया करदी -भोत पीस्से। हाथ च्यौड़े देख हामे अंदाजा सा ला लेंदे अर अपनी जाण म्है सई जवाब देंदे ‘हां दादी, खुस नी, भोत खुस।’’

  ” के बोल्या जाएरोए , भोत खुस! ‘‘ दादी बांगा सा मूंह करके म्हारै कान तळै चट्टू सेक देंदी, ‘ रे भिड़ाण जोग्यो, पीस्सयां तै तो भगवान का बी भला नी होंदा, व्यापारी के घणा नदीद था? खुस कडै़, बिच्यारा व्यापारी तो सूकणै पड़ग्या अक उस धोरै झ्यान बिना का पिस्सा। अर फेर बी गाम आळे उसकी इज्ज़त कोनी करदे अर उसनै ‘लिद्दू’ कहके छेडै़ं।

  व्यापारी इतनी कायली मानग्या अक रातूं-रात यो गाम छोड्ड के भोत दूर एक सैहर मेदनीपुर म्है गूदड़े जा टेके । ओडै़  उसकै बाब्बू नै एक बड्डा सा गुदाम मोल ले लिया, बड्डा सा घर अर इस्सै बात पै ओडै़ के स्याणे लोग उसनै भोत बड्डा आदमी मानण लाग्गे। इब्ब तो व्यापारी नै खुस हो ज्याणा चइये था पर एक और टैन्सन नै उसका जीणा दूब्बर कर राख्या था।

  अर बेटा, टैन्सन या अक इब्ब मेदनीपुर के लोग उसनै के कैह के बुलावैं । यें सुथनै आळे सहरी गरीब रणधीर नाई नै तो नाम बिगाड़ के धीरा कैंहगे। अर बड्डै आदमी का नाम बी कोनी लेवैं जिस तरियां बहू आपणै जेठ अर सुस्सरै का नाम कोनी लिया करदी। बड्डै आदमी नै जात गल्लै जी अर नईं तो साब लगा के बोलण का रिवाज़ सै । इब्ब न्यूं तो थम बी जाणो अक आपणै देस म्है रोटी-पाणी बिना तै फेर बी गुज़ारा होजे पर जात बिना कोनी होवै। अर या ए बणी। पैहलै ए दिन उसकै एक पड़ोसी नै पूछ बी लिया ”भाई साब, आपकी जाति क्या है?’’

व्यापारी इस बात की त्यारी कोनी कर रया था ज्यांतै उसकै मूहं तै एकेदम लिकड़ग्या ‘ गुप्त।’

रे भाई, उसनै गुप्त कैह तो दिया पर कैह के डरया बी भोत बिच्यारा। इब्ब उसनै न्यूं के बेरा था अक चोर तै कोए सिपाई एकेदम पूछ ले ”कौन हो तुम?’’ अर डरदै चोर कै मूंह तै लिकड़ जे ”चोर’’ तै भाई पुलिसिया तो इसनै मजाक ए समझैगा। बिच्यारा व्यापारी तै आपणी जात लकोहणा चावै था, ज्यांतै ‘गुप्त’ कैह बैठया। पूछणिया गरीब आदमी था। गरीबां की एके पिछाण होया करै अक वें अमीरां कै मज़ाक नै साच्ची मान लिया करैं। बावली बूच भाज्या गया अर पूरै सहर म्है ढिंढोरा पीटण लाग्या अक उसका पड़ौसी कोए इस्सा-उस्सा टटपूंजिया कोनी, बल्के भोत बड्डे गुप्त जी सैं।

   फेर दादी मड़ा सांस ले के कैंदी ‘इब्ब चए थामै बेसक आपणी बेसुरी मां कै कानां म्है पो दियो, पर भुंडौड़ी बात कए बिना मेरै पै बी कोनी रया जांदा। बात या अक थारी मां राण्ड नै थारै बाब्बू कै घेटी म्है गूंठा देके थामै अंगरेजी स्कूलां म्है दाखल कराए थे। थारा बाब्बू पिस्स्यां की भाथड़ बांद के स्कूल की फीस देवैे अर फेर थामे कंजर केरल नै केरला अर हनुमान नै हनुमाना कैहणा सीखो। थारी मां तै तो मेरे मेदनीपुर के गूंट्ठा टेक घणे स्याणे निकळे। उननै चवन्नी खरचणी तै दूर, स्कूल धोरै को काटड़ा ले के बी कोनी लिकड़े अर फेर बी कान्वैन्ट स्कूल के बाळकां की ढाळ गुप्त नै गुप्ता कैहण लाग्गे।

तो भाई, गुप्ता जी कुहाके व्यापारी कै बी सांस म्है सांस आए। ज्यान तै बची ए अर सक्कर सी बी भीजगी। मन म्है लाड्डू फूट्टण लाग्गे अक इब्ब गुप्ता जी बणया पाछै सहर के बड्डै लोगां गैल उठ-बैठ रहैगी। सहर म्है किस्से नै बेरा कोनी पाटदा अक गाम म्है कोए के होया करदा अर उरै आके के बणग्या! मन्नै तो भाई इन आंख्यां तै देख राख्या सै अक ठेठ देहातण बी सहर आंदे ए रिफळ के काळै नाग बरगी चोटी कटा लें। ऊप्पर तै पहरावा इस्सा अक नीं बोलैं तो बेरा ए नीं पाटै अक स्यामी किरण भैंजी सैं अक कर्ण भाई साब। चल जाण दयो रे! आपां नै के लेणा-देणा ? वें तिरिया जाणैं, उनका देह-धर्म जाणै अर उनके खसम जाणैं। पर आपणै व्यापारी कै तै एक टैन्सन और होगी।’’

दादी बात करदी व्यापारी कै टैन्सन की अर या टैन्सन होण लाग ज्यांदी म्हारै। गोझ म्है रप्पिए आंदे ए हाम बाळक तो नाच्यां करै अर दादी का लिद्दू टैन्सन लेवै। या के बात होई? हामनै दादी की या टेकनीक टीवी आळे बाब्यां बरगी लाग्या करदी। यें मेरे बट्टे बाब्बे लोगां नै तो मोह-माया तै दूर रहण की नाळ सी प्याये जांवै अर आप दोनूं हाथां तै पिस्से सूडैं़ । मोह का तो बेरा नीं, पर माया किसे-किसे बाब्बै की बुक्कळ म्है तै अखबार आळे चौथे दिन काड्डे राखैं। हामे सोचदे या बुढि़य़ा कदे ज्यांतै तो पिस्सै नै टैन्सन गल्लै नीं जोड़दी अक हामे उसपै पिस्से ना मांग ल्यां।

 दादी कैंहदी ” तो भाई रे, व्यापारी कै टैन्सन या अक मोकळा पिस्सा, फेर बी बिच्यारा अमीर दिखण खातर बै्रण्डिड कपड़े पहरण नै तरसै। एक दिन कोट-पैंट अर टाई ले तो आया खूब मैंहगे, पर मोट्टा इतना अक पैहरके चाल्या नी जावै। टसक-टासक के थोड़ा-भौत टैहल तो लिया पर दुकान की गद्दी पै बैठण लाग्या तै नानी याद आगी। फेर बी धक्का करके बैठया अर बैठदे ए पैंट पाछै तै भर…र्र्र..र्र होके बड्डा सा बाघा-बोडर खुलग्या। हारके उसने आपणी वा ए धोती बांधणी सरू कर दी। इब्ब न्यूं बताओ अक मेदनीपुर आळे उस धोती आळै नै के कैहण लाग्गे होंगे?

हामे स्कूल म्है सीख्योड़ा मुहावरा बताण लागदे ” लौट कर बुद्धू घर को आए।’’

दादी टूट के पड़दी ” वा रै माट्टी के शेरो ! थारै बाब्बू की तरियां घणे ज्ञानी राम ना बणो। थारी बेसुरी मां के गधै आळे मोट्टै दिमाग तै सोचोगे तो मेदनीपुर की नब्ज थ्यावैगी।’’

बूड्ढ़ी सी फूक के हामे दूसरा मुहावरा बतांदे ” कव्वा चला हंस की चाल।’’

दादी छोह म्है आ ज्यांदी ”बेसुरी राण्ड सेद्धै ए सेद्धै! जिस्सी कमअकल मां, उस्सी ए उलाद जाम के गेर दी। आपणी डाक्कण मां का एक रूंग तो छोड दिया होंदा।’’  फेर म्हारै म्हैं को म्हारी मां नै हराण खातर दादी जिद्दी ला के खडी़ हो ज्यांदी ”चए तो उत्तर बताओ, अर नईं तै बोलो हार मान ली।’’

हारके हामे कंहदे ”हार मान ली। इब्ब तों बता दादी, मेदनीपुर आळे उस मोट्टै नै के कहया करदे ?’’

  ” धोती प्रसाद।’’ दादी पोपले मूहं तै हांस्सण कै चक्कर म्है जनरेटर की तरियां फक्क-फक्क हवा फैंकण लाग ज्यांदी।

”धोती प्रसाद !हा हा । यो के नाम होया?’’ हामे ताड़ी पीटकै घणी ए देर ताईं हंासदे अर पैर ऊप्पर करके खाट पै लोट मारण लाग ज्यांदे।

”चुप्प ऽऽ, बदमासो। एक बी सांस काढय़ा तै ज्यान काढ़ ल्यूंगी! बांदर बरगी सकल आळी आपणी मां की तरियां सारै दिन खिर्र-खिर्र ए करणी आवै अक किम्मे और बी आवै थमनै?’’ दादी धमकाण लाग ज्यांदी। फेर मड़ी सी हाण पाच्छै कबूतर की तरियां आंख गोल करके फुसफुस करदी ” घणे स्याणे बनो तै न्यूं बताओ अक धोती की घर आळी नै मेदनीपुरिए के कैंहदे होगे ?’’

सम्पर्क-9996245222

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