कृष्ण चन्द्र महादेविया
लघुकथा
बस भरी तो थी किन्तु पाठशाला जाने वाले छोटे और बड़े बच्चे बस में चढ़ आते थे। कुछ अकेले तो कुछ को उनके अभिभावक बस की ऊंची पौडिय़ों से उठाकर चढऩे में सहायता करते थे। कर्ण और सुकन्या की दादी भी उन्हें पाठशाला छोडऩे और ले जाने आती थी।
बस में सातवीं सीट के पास खड़े पांच वर्ष के कर्ण ने अपने से एक वर्ष बड़ी चचेरी बहिन से पूछा-
”दीदी, बस के स्टैपस तो आप से भी चढ़े नहीं जाते, कितनी कठिनाई से चढ़ती हैं आप। दादी मां क्यों नहीं उठाकर बस में बिठाती? ..मुझे तो रोज झटपट स्टैपस से उठाकर बस में बठा देती हैं।’’
”मैं लड़की हूं न भैया।’’
छोनों बच्चों की बातें सुनती सवारियों और कण्डक्टर के हाथों के तोते उड़ गए थे। जब कि दादी मां बगलें झांकने लगी थी। सम्पर्क- 8679156455