सावी – सतीश सरदाना

(लेखक सतीश सरदाना का जोधपुर पाखर, जिला भटिंडा पंजाब में जन्म हुआ।  एम बी ए फाइनेंस की शिक्षा प्राप्त की।  कविता,लघुकथा, कहानी व विचोरोत्तेजक लेख लिखते हैं।  वर्तमान में सर्व हरियाणा ग्रामीण बैंक में प्रबंधक हैं।  गुड़गांव में रहते हैं। )

जब से इस घर में आई है सावी, एक दिन सुख का साँस नहीं लिया। रतिया की नाली के किनारे का गाँव, बारिश में छत तक पानी भर जाता, रत्ता टिब्बा पर जाकर शरण लेनी पड़ती। बाकी पूरा साल प्यासा। घर में हाथ से खींचने वाला नलका तक नहीं। दो टोकनी बग़ल में एक चाटी सिर पर उठाकर सावी दो किलोमीटर चहलों के नलके पर जाती। चहलों के गबरू होते लड़के भाबी,भाबी करके नलका गेड़ते। चहलों की बूढ़ी अम्मा खाट पर बैठी गालियाँ बकती। कोसने कोसती। सावी की सात पुश्तों की औरतों के चरित्र पर लांछन लगाती। सावी की कोई प्रतिक्रिया न पाकर,फिर से रहरास साहिब का जोर जोर से पाठ करने लग जाती।

उसका घरवाला सहारण सिंह या शरणी कहने को तो पंद्रह किल्ले का मालिक था। लेकिन सारी जमीन दारू और अफ़ीम के नशे की बदौलत चहलों के पास गिरवी रखी थी। जिसको छुड़ाने के लिए डेढ़ लाख रुपये की दरकार थी जो सावी मरकर और बिककर भी न जुटा सकती थी। शरणी को चहलों ने साढ़े तीन लाख और लेकर उनके पक्ष में रजिस्ट्री करवाने की आफर दे रखी थी। लेकिन सावी की कोई बात न मानने वाला शरणी उसकी ये बात मान गया था और चहलों के बूढ़े सरदार दातार सिंह से हाथ जोड़कर कह दिया था,तेरा दित्ता खावणा है सरदारा, की करिए तिविं रोला करदी। कहन्दी, फाँसी खा मर जूं जो तूं जमीन वेचन दा नाम ल्या ते। सरदारा, मेरा दो रोटी दा जुगाड़ जांदा रहूं। जे ओ सच्चई कर गी। मैनु बुढ़े नु फ़िर किसने कुड़ी देनी।

सच कहता था शरणी जब सावी को ब्याह के लाया था, पेंतालिस साल का था वह। सावी मुश्किल से अठारह की होगी। ऊपर से नशा पत्ती करने की बदनामी। सात बहनों में सबसे छोटी सावी को ब्याह की सबसे ज्यादा जल्दी थी। बाप सिर पर था नहीं। उसका नंबर कब आता, क्या पता। एक जुआ खेला था। शहर से आये एक ईसाई बेलदार के साथ भाग गई थी। जो उसे दो महीने खूब तबीयत से भोगकर जाने कहाँ भाग गया था। पेट में उसका बच्चा लेकर वह वापिस घर आ गयी थी।

उसकी माँ ने पहले तो उसकी खूब कुटाई की। फ़िर उसके गले लगकर रोई। पेट के पाप का पता लगने पर रिश्तेदारों से गुहार लगाई। तब किसी हाइवे ढाबे वाले रिश्तेदार ने हमप्याला, हमनिवाला शरणी का नाम सुझाया। शरणी तो सावी की शक़्ल देखकर ही मुग्ध हो गया। उसके बच्चे को भी अपना नाम देने को तैयार हो गया। लेकिन बच्चा तो बचा ही नहीं। और शरणी समाज के तानों से भी बच गया।

जमीन हाथ आती न देख चहला सरदार का दबाव शरणी पर बढ़ गया। रोज रोज तगादा किया जाने लगा। एक दिन शरणी आधी रात को उठा और सावी को उठाकर बोला, दो दिनां दी रोटी बन्न दे।

सावी ने न पूछा कि किधर जाएगा दो दिन।

कुछ नींद की झोंक थी। कुछ सवाल न करने की आदत। अफीमची और दारूबाज मर्द का क्या पता, गुस्से में दो हाथ ही जड़ दे।

रोटियों पर प्याज़ और अचार रखकर पोटली बना कर उसने परना कंधे पर रख लिया। चादरा बांधकर रबड़ के जूते पहने। एक खेस उठाकर सिर मुँह ढका और सर्द रात में जाने कहाँ चला गया। कई दिन तक कोई ख़बर न लगी उसकी।

सावी ने उसकी कई दिन तक राह तकी। न वो आया न ख़बर आई।  इकलौते कमरे को ताला लगाकर वो माँ बहनों के पास आ गई।

सबसे बड़ी बहन को टी.बी. हो गई थी।  इसलिए उसकी कमीनी सास ने उसे मायके भेज दिया था। सावी आ गयी थी तो माँ ने उसे बड़ी बहन के साथ जिला सरकारी अस्पताल में इलाज करवाने भेज दिया था। एक्सरे में बहन का सीना ऐसा आया था जैसे छलनी। कमीनी सास उसे सारा दिन खेत में जोते रखती थी। घर आती तो दस भैंसों की रखवाली, दूध निकालना और न्यार फूस।

इतने कामों के बीच उसे रोटी खाने का ध्यान ही न रहता। घरवाला शहर में रहकर वकालत करता। छुट्टी पर घर आता,तो माँ की कुछड़ ही न छोड़ता। माँ उसकी सौ सौ शिकायतें लगाती।  गुस्से में आकर वो माँ के सामने उसे दो चार जड़ देता। रात को अकेले में पुचकार लेता। उसके शरीर का स्वामी था वह। मारे या पुचकारे। उसे क्या,वह मशीन बनी रहती।

इस बीच उसे न जाने कब टी.बी. हो गई।

सास ने सब जगह फैला दिया, बीमार लड़की धोखे से हमारे पल्ले बांध दी। ठीक हो जाएगी तो रखेंगे। नहीं तो पढ़ा लिखा वकील लड़का है, तलाक ले लेगा और नई बीवी लाएगा।

एक महीना दवाई खाकर और मंझे से लगकर सेवा करवाने का असर शरीर पर दिखाई देने लगा। थोड़ी सेहत संभली तो उसको घर की चिंता हुई। सास ने ताकीद कर दी बग़ैर पूरी तरह ठीक हुए न आए।

एक दिन जब सावी चाय पानी लेने किराये के कमरे पर गई थी बडी का पति आया। दो किलो सेब दे गया, पाँच सौ रुपये भी।

बड़ी बड़ी खुश थी उस दिन। उसके पति को परवाह है उसकी। सास के जुल्म और पति की मार सब भूल गई। पति ने अनुरोध किया था कि इलाज बीच में न छोड़े। चाहे छः महीने लगें या साल।

पति की आज्ञा को बाबा जी का हुक्म मानकर वो दवाई नियम से खाने लगी थी।

अब छः माह पूरे होने को थे। वह शरीर में तंदरुस्ती महसूस करने लगी थी। सावी सोचती थी कि विधाता, नसीब लिखने वाला सबसे बड़ा लेखक उनके इतने भी खिलाफ़ नहीं है। उनकी ही श्रद्धा अधूरी है जो उन्हें बार बार दुःख देखना पड़ता है।

लेकिन होता यह है कि जैसे ही ईश्वर की परमसत्ता पर विश्वास जमना शुरू होता है वैसे ही शैतान अपना खेल दिखा देता है।

बड़ी के पति ने दूसरी शादी कर ली है,यह ख़बर जहर बुझे खंजर की तरह उसके सीने में भोंक दी गयी थी। बड़ी और सावी एक दूसरे के गले लगकर खूब रोई थी। उनकी एक शहर में पढ़ी लिखी चाची ने पता लगाया था कि उसके पति ने बाकायदा कानूनन राजीनामे से तलाक़ लिया था, तलाकनामे पर बड़ी के दस्तख़त थे। बड़ी ने छोटी को बताया उस दिन जब पति आया था,उसने कोर्ट के कागजों पर यह कहके सही करवाए थे कि शहर में उसके लिए मकान खरीद रहा है। गाँव में वो मिट्टी से मिट्टी होई रहती है और अपनी सेहत का ख़्याल नहीं रखती है।

एक तरह से अच्छा हुआ था कि उसने ख़ुद रिश्ता तोड़ दिया था,लेकिन धोखा देकर तोड़ने की बजाय मर्द बनकर सामने आकर कहता कि तेरा मेरा रिश्ता शरीर का था, तेरे पास कंडम शरीर बचा है, उससे मेरा काम नहीं चलता। मुझे नई देह का इन्तजाम करना है। तू मेरे रास्ते से हट जा। वह खुशी खुशी हट जाती। क्योंकि उसने प्रेम पाने के लिए शरीर दिया था। उसने शरीर पाने के लिए प्रेम किया था। वह उन कोसी कोसी चिकनी रातों की याद में जिंदगी गुजार देती। यह धोखे की फांस उसके सीने में तो न चुभती।

इस तलाक़ और दूसरी शादी की ख़बर ने बड़ी की सेहत पर बड़ा बुरा असर डाला। दवाई न खाती तो न खाती। सोई रहती तो सोई रहती। रोती रहती। खाना न खाने की आदत तो शुरू से ही थी। उसकी सेहत गिरने लगी तो फिर न संभली। एक दिन हाय हाय करती उठी। साँस न ली जा रही थी। इमरजेंसी में ले जाते इससे पहले ही ख़त्म हो गई।

बहन के मरने के बाद सावी के जिम्मे शहर में कोई काम न रहा।  माँ के घर लौट कर कुछ दिन बावलों की तरह फिरती रही।  एक दिन ससुराल वाले गाँव से कोई फ़ेरी वाला आया।

रोटी खाने के लिए अचार,मूली या लस्सी में से कुछ भी जो गृहस्थी में सुलभ हो जाये माँगने लगा। चाटी में गिलास डाला तो नीचे जा लगा। लेकिन आधा गिलास लस्सी फिर भी हाथ आ गई। तवे पर थोड़ा जीरा गरम कर थोड़ा कोसा पानी मिला गिलास भर दिया।  देने पहुँची तो फेरी वाला गौर से देखता मिला। उसे बड़ा गुस्सा आया। कुछ कहती इससे पहले ही बोल पड़ा।

“जे में भुलदा नहीं तां तूं शक नहीं शरणी दी तिंवी ता नहीं। “

उसने हाँ में सिर हिलाया।

तुहाड़ी जमीन तां चहलां दे गहने धरि। शरणी बाई  बड़ा भला बंदा। जे अमली न हुँदा तू राज करदी राज,वो एक घूँट लस्सी का भर के बोला था।

मैं ता हुन वी राज करदी  राज!,उसे पति की बुराई अच्छी न लगी थी। बाकी राज तो जैसा कर रही थी उसका दिल ही जानता था।

फ़ेरी वाला रहस्यमयी आवाज़ बनाते हुए बोला,”मुझे शरणी मिला था। बहुत देर बातें की हमने। तुझे बहुत याद करता है। “

सावी चौंक पड़ी। इतने में माँ की आवाज़ पड़ी। भैंस खुल गई थी,भागी जा रही थी।

उसके पीछे जाना जरूरी था।

बाद में उसने माँ से फेरीवाले की बात का जिक्र किया।

माँ हँसी और बोली, साडे खसम दे कौन यार,धोबी तेली और मनिहार।

फ़िर सीरियस होती हुई बोली,एक फेरा ससुराल के गाँव का लगा ले। बहुत दिन तक डेरा सुनसान न रहना चाहिए।

उसे भी फिक्र होने लगी।

अगले दिन बस पर सवार होकर घर पहुंची। घर पर किसी और का परिवार बस रहा था। उनका सामान एक कोठड़ी में धूल खा रहा था। पता चला कि चहलों के बुजुर्गों ने नालिश करवाई है। वो अपना सामान बैलगाड़ी पर लदवा चुपचाप चली आयी।  उसे इस हाल में वापिस आया देखकर माँ का दिल भर आया और वो रोने लगी,मेरी लड़कियों के भाग्य में सुख नहीं है क्या सच्चे पातशाह!!

अगले दिन सावी एक निश्चय करके उठी कि वह कोर्ट जाएगी और मुक़द्दमा करेगी। बगैर लड़े हार नहीं मानेगी।

संपर्क : —9896246839

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