‘साकी‘ प्रसिद्ध अंग्रेज लेखक एच. एच. मनरो का उपनाम है जिनका जन्म 1870 में ब्रिटिश बर्मा में हुआ। उन दिनों बर्मा भारत की ही एक राजनैतिक इकाई था। जब 1914 में प्रथम विश्व युद्ध शुरू हुआ तो इनकी की आयु 40 से ऊपर थी, लेकिन कोई बाध्यता न होने के बावजूद भी मनरो स्वेच्छा से अंग्रेजी सेना में भर्ती हो गये। अन्ततः 13 नवम्बर 1916 को फ़्रांसिसी जमीन पर जर्मन सेना से लड़ते हुये युद्ध के मैदान में इनका देहान्त हुआ। कहानी के क्षेत्र में इनको वैश्विक स्तर पर उस्ताद का दर्जा हासिल है। द इंटरलोपर, द ओपन विण्डो, द टॉयज़ ऑफ़ पीस, द बुल, द ईस्ट विंग आदि इनकी अनेक कालजयी कहानियां हैं। इस अंक में प्रस्तुत है साकी उर्फ़ एच. एच. मनरो की विश्व प्रसिद्ध कहानी ‘The Open Window’ का हरियाणवी अनुवाद।
अनुवाद किया है राजेंद्र सिंह ने, जो राजकीय महाविद्यालय, गुड़गांव में अंग्रेजी के सहायक प्रोफेसर हैं। विश्व साहित्य के गहन अध्येता राजेंद्र सिंह की हरियाणवी जन-जीवन, भाषा व संस्कृति पर गहरी पकड़ है। इसी वजह से अनुवाद एकदम सहज- स्वाभाविक होता है। इनका अनुवाद हरियाणवी भाषा की सूक्ष्म अभिव्यक्ति की क्षमताओं को रेखांकित कर रहा है-सं।)
नटल साब, मेरी काकी बस या आई तळै, मड़ी सी हाण म्हं,” पन्द्राह् साल की छोरी वीरा किसे बड्डे-बडेरे की तरियां जमा टिकाई तै बोली, “जय्ब तक थोड़ी सी ठ्यरास राखो, अर चाहो तो मेरी गैल बतळा ल्यो। मैं उळगी ए हूँ।”
फ्रैमटन नटल सोच्चण लागग्या के ओ इसी कुणसी चिकणी-चुपड़ी बात करै के भतीजी खुस हो जे, अर इसकी काकी आवै तो उसनै बी बुरा नीं लाग्गै। पर भीत्तर ए भीत्तर फ्रैमटन का सक और बी गह्रा होण लागग्या के घबरोह्ट की जिस बिमारी के एलाज के चक्कर म्हं ओ उरै सहर तै दूर आया था, अर अणजाण माणसां तै मिलण-फेट्टण लागर्या था – इसका किम्मे फैदा बी था अक ना।
“मन्नै बेरा है के बणैगी,” उसकी बेबे नै कह्या था जय्ब ओ देहात मैं जाण की तैयारी करर्या था, “तू ओड़ै जा कै कती कल्ला हो जैगा। ना तू किसे गैल बोल्लै-बतळावै, ना तेरा जी लाग्गै। तेरी या घबरोह्ट की बिमारी दूणी हो जैगी। मैं तो इतना जाब्ता कर सकूँ के ओड़ै जितने लोगाँ नै जाणुं, उनकै नां की चट्ठी बणा के दे द्यूंगी। जड़ै तक मेरै याद आवै, उन्मैं तै कई तो बड़े भले माणस थे।”
फ्रैमटन सोच म्हं पड़ग्या के जिस बीरबान्नी बर्टी सैप्पलटन के घर ओ आज मिलण आया था, उसकी गिणती उन भले माणसां मैं होवै थी अक ना।
“उरै लवै-धोरै त्हाम कितने लोगां नै जाणो ?” वीरा नै पूछ्या, जय्ब उसपै और घणी चुप्पी बर्दास्त नींह् होई।
“एक नै बी नीं,” फ्रैमटन बोल्या, “असल मैं मेरी बेबे कुछ दिन उरै पादरी के घरां रही थी, कोए चार साल पहल्यां। उसनै ए मेरै तांहि उरै के कुछ बसिन्दों के नाँ की सिफारसी चट्ठी दी थी।”
फ्रैमटन नै आखिर आळी बात कुछ दुखी सा हो के कही थी।
“इसका मतबल त्हाम मेरी काकी के बारै म्हं कुछ नीं जाणदे ?” छोरी नै फेर बड़ी टिकाई तै पुच्छ्या।
“बस नाम अर पता बेरा है,” फ्रैमटन नै हाँ भरी। ओ सोच म्हं पड़ग्या के सैप्पलटन सुहागण थी अक बेवा थी। जय्ब उसनै साब्बत बैठक म्हं नजर मारी तो न्यू लाग्या जणूं ओड़ै कोई जनानी रह्न्दी ना हो।
“मेरी काकी गैल जो बोह्त ए बुरा हादसा होया, उसनै तीन साल हो लिए,” छोरी बोली, “त्हारी बेबे तो उस टेम उरै तै जा ली थी।”
“हादसा ! कुणसा हादसा ?” फ्रैमटन नै पुच्छ्या। या तो बात उसनै सोची ए कोनी थी के देहात के शांत माहौल म्हं किसे गैल कुछ आच्छी-भुन्डी बी बण सकै ।
“त्हामनै या बात कोनी सोची के कातिक की इस ठण्ड म्हं बी, बैठक का यू बारणा पूरा खुल्ला क्यूँ पड़्या सै,” बाहर आंगण म्हं खुलण आळे बारणे कानी आंगळी करदी होइ भतीजी बोली।
“इतनी घणी तो खैर ठण्ड होइ कोनी सै,” फ्रैमटन बोल्या, “पर इस बारणे का उस हादसे गैल के लेणा-देणा सै ?”
“आज तै ठीक तीन साल पहले, ठीक इसे बारणै म्हं को, मेरी काकी का घरआळा अर काकी के दो छोटे भाई शिकार खेलण गए थे। बोह्ड़ कै आये ए कोनी। यु जो स्याम्मी बरानी सिमाणा पड़्या सै, इसनै पार करदी हाण धोखै तै एक दलदली खढै म्हं जा पड़े। उस बरस बारिस बोह्त होइ थी। जमीन बी जो ठीक-ठाक थी, आप्पो जगहां-जगहां तै गरकण लाग गी। उनकी लास बी नीं पाई। सबतै घणा दुख तो हामनै इसे बात का सै।”
या बात कहन्दे-कहन्दे बाळक की आंख्यां मैं पाणी आग्या अर उसका गळा रुंधण सा लागग्या।
“मेरी काकी बेचारी सारी हाण न्यू ए सोचे जावै सै के कदे ना कदे तो वैं जरूर उल्टे आवैंगे। वैं तीनों अर म्हारा काळा कुत्ता बी जो उनकी गेल्याँ ए खूग्या था। वैं सारे इस्से बारणे मैं को आवैंगे, जिस्मैं को गए थे। यू बारणा हाम कदे बी बंद नीं करदे, अंधेरा होण तै पहलां। बेचारी काकी, कितनी बार तो उसनै मेरै तांहि बताया होगा के वैं सारे क्यूकर बाहर गए थे। काका नै धौळा बरसाती कोट कांधै पै गेर राख्या था। रॉनी, काकी का सबतै छोटा भाई, गाणा गाण लागर्या था अर काकी नै खिजावै था :
‘ए बर्टी, यु सारा घर सै हाल्लै
तू क्यूँ उछळ-उछळ कै चाल्लै ?’
यू गाणा सुणकै काकी कै जळैवा ऊठज्या करदा। काकी की बात सुण-सुण कै कई बै तो मन्नै बी न्यू लाग्गै के वैं जरूर एक दिन इस बारणै म्हं को चाल कै उल्टे …,” छोरी नै सुबकणा सरु कर दिया अर बात आधम म्हं ए रहगी।
फ्रैमटन बी बिचळ सा गया। उसकी समझ म्हं नीं आया के करै। उसकी साँस मैं साँस जिद आई जय्ब चाणचक काकी पोहंचगी। वा बाट दिखाण पै माफ़ी मांगदी होई बोली:
“मेरै जचै सै, वीरा नै जी तो लायें राख्या होगा ?”
“अँ ! हाँ हाँ… बड़ी भली छोरी सै,” फ्रैमटन नै जबाब दिया।
“यु बारणा जै खुल्ला रवै तो, त्हामनै कोए दिक्कत तो नीं ?” बर्टी बोली, “मेरा घरआळा अर भाई शिकार खेल कै बस उल्टे आण आळे सैं। वैं सारी हाण बस उरै ए को आवैं। आज वैं बीड़ के दलदल आळै हिस्सै मैं काब्बर का शिकार करण गये सैं। मन्नै बेरा, वैं मेरे दरी-गळीच्यां का बुरा दीन कर देवैंगे। त्हामनै बेरा आदमी की किसी जात होवै। ठीक कह री हूँ ना ?”
फेर काकी बिना साँस लिये, बात पै बात करदी रही – कदे शिकार की, कदे काब्बराँ की, अर कदे जाड्यां मैं बत्तख़ाँ की कमी की। उसकी बात सुण-सुण कै फ्रैमटन कै भय म्हं जाड्डा सा चढग्या। उसनै बड़ी कोसिस करी के बात नै टाळ दे, किसी और मुद्दै पै बात हों। फेर उसकै समझ मैं आया के उस बीरबान्नी का उसकी बातां म्हं तो ध्यान ए कोनी था। उसकी नजर तो बस बाहर खुल्ले सिमाणे पै अटकी पड़ी थी। या उसकी बस बुरी किस्मत ए थी के ओ एक त्रासदी की बरसी पै इस घर मैं आण पड़्या था।
“मैं जितने बी डॉक्टरां तै मिल्या हूँ, सबनै एको बात कही सै के भाई पूरा अराम कर, दुख-चिंता तै बच के रहो, अर कोए बी खुभैत या भाग-दौड़ का काम नीं करणा। पर खाण-पीण के मुद्दै पै कोई बी दो डाक्टर एक रै कोनी,” फ्रैमटन जोर दे कै बोल्या। बोह्त सारे लोग-लुगाइयाँ की ढाळ ओ बी न्यू ए मान्या करदा के अणजाण-बिराणे लोग बी दुसर्यां की बिमारी, उनके इलाज-परहेज के किस्से पूरा ध्यान ला कै सुणैं।
“के?” बर्टी सैप्पलटन जंभाई लेंदी होइ बोली। फेर चाणचक उसका चेहरा खिल सा गया। मामला फ्रैमटन की राम-कहाणी का नीं, कुछ और था।
“वैं आ गे ! वैं आ गे !” वा ठाडु रुक्का मार कै बोली, “ठीक चा कै टेम आये सैं। इनका हाल तो देखो, जमा आंख्यां तक चिक्कड़ मैं अंट रे सैं। “
फ्रैमटन के काम्बणी चढ़गी। उसने मुड़ कै भतीजी कानी देख्या जणूं दिलासा देणा चाह्न्दा हो। छोरी पहल्म ए बारणै म्हं को बाहर देखण लाग री थी।
डर म्हं उसके दीद्दे बाहर लिकड़न नै हो रे थे। फ्रैमटन कसूता डरग्या। उसनै घूम कै बाहर देख्या जित काकी भतीजी की नजर गढ़ी पड़ी थी। फ्रैमटन नै तिवाळा आया।
मुँह-अँधेरे का बख्त था। तीन माणस आंगण कै बिच्चो-बीच होंदे होए, बारणै कानी आण लाग रे थे। तीनुआँ के कांद्यां पै बंदूक थी। एक जणै के कांधै पै धौळा कोट झूल्लण लागर्या था। एक काळा कुत्ता उनकै पाछै-पाछै था। चुपचाप वैं बैठक कै लवै सी पोहंचगे। फेर अंधेरै म्हं तै एक गाणै की अवाज आई। गाण आळै का जणूं गळा बैठर्या हो :
‘ए बर्टी, यु सारा घर सै हाल्लै
तू क्यूँ उछळ-उछळ कै चाल्लै ?’
बैठक म्हं जणूं तुफ़ान आग्या हो। फ्रैमटन नै सैड़ दी सी अपणा डण्डा अर टोपा ठाए, फेर आंधा हो कै बाहर भाज लिया। चौंक आळा दरवाजा, बरण्डा, दहळीज – उसनै कुच्छ नीं दिख्या। बाहर गाळ म्हं एक सैक़ल आळै म्हं धसूड़ मारी होन्दी, उस बेचारै नै बचण खात्तर सैक़ल कांड्यां आळी बाड़ मैं पौ दिया।
“ल्यो भई, हाम पोह्न्चगे हाँ,” धौळै कोट आळा खुल्लै बारणै म्हं को भीत्तर बड़दा होया बोल्या, “धँस तो आज जमा भुन्डी तरियां गये। अर यु अरड़ु कूण था ? हामनै देखदें उसका खखाटा पाट्या !”
“के बताऊँ, माणस के चाळा था। नटल-पटल, बेरा नी के नाम था ,” बर्टी बोली, “बस अपणी बीमारी ए की बतान्दा रह्या। त्हामनै देखदें गोळी की तरां छुट लिया, बिना कुछ कह्एं-सुणें। ओ तो न्यू भाज्या, ज्युकर कोए भूंत देख लिया हो।”
“मेरै हिसाब तै तो ओ अपणै काळु नै देख कै भाज्या सै,” भतीजी नै बड़ी टिकाई तै कह्या, “मेरै तांहि बतावै था ओ के उसकै मन म्हं कुत्त्यां का खौफ बैठ्या होया सै। पहलां ओ इण्डिया मैं नौकरी कर्या करदा। एक बै गंगा नदी कै कंठारै, अवारा कुत्त्यां का एक टोळ उसकै पाच्छै पड़ लिया। ज्यान बचाण खात्तर ओ भाज कै एक कबरिस्तान मैं बड़ग्या अर तग्गाजा करकै एक ताज़ी खुदी होड़ कबर मैं कूदग्या। सारी रात कुत्ते उसकै सिर पै बैठे रह्ए। गुर्रांदे रह्ए, दांद पिसदे रह्ए अर अपणी लाळ उसकै उप्पर गेरदे रह्ए। जिस गैल इस ढाळ के हादसे बीत लिये हों, ओ डरै नीं तो के आपणी इसी-तिसी करवावै !”
आँख की झमक म्हं गपौड़ घड़ण के मामलै म्हं या छोरी सबकी सबकी बुआ लाग्गै थी।
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