रामेश्वर दास ‘गुप्त’
रागनी
तर्क करूं अर सच जाणूं, ये रहणी चाहिए ख्यास मनै
अंधविश्वास सै नाश की राही, बात बताणी खास मनै।
भगत और भगवान बीच म्हं, दलाल बैठगे आ कै,
कई भेडिये पहन भेड़ की, खाल बैठगे आ कै,
भगवान बहाने कई ऊत चाटणे, माल बैठगे आ कै,
क्यूं होरी सै खूण्डी लूटयें, सवाल बैठगे आ कै,
करणी चाहिए जांच परख, तंग कर री यें बकवास मनै।
मुल्ला किते पुजारी तो, किते ग्रंथी ठेकेदार बणे,
खूब कमा कै भूखा, यें महलां के सरदार बणै,
सभी ठिकाणे दीन धर्म के, लूटण के हथियार बणे,
पहन गेरूए रण्ड-मलंग, मेहणत के हकदार बणे,
इस तरियां की लूट दुधारी, ना आणी चाहिए रास मनै।
खा कै किलो अफीम सोच ली, बात उड़ा दी जनता म्हं,
सहम नशे म्हें गप्पे घड़र्या, अर् सरका दी जनता म्हं,
झूठ-कपट की टेढ़ी-मेढ़ी, राह बिछा दी जनता म्हं,,
राम-नाम की झूठ कहाणी, ईब सुणा दी जनता म्हं,
समझ रह्या मैं ‘रामेश्वर’ सूं, वो आज समझ रे ‘दास’ मनै।