बिखरे हुए ख्वाबों को – राजकुमार जांगड़ा ‘राज’

बिखरे हुए ख्वाबों को,
एक साथ संजोना है
गिरते भी रहना है
चलते भी जाना है
खुशियों सा
कोलाहल  तो
सिर्फ दिखावा है
गायेगा सिर्फ वही
आता जिसे रोना है
आएंगी
टकरायेंगी
लहरें
वापिस भी जाएंगी
सागर से टक्कर है
साहिल हो जाना है
मन के मेले में
लोग तो आएंगे
छोड़ भी जाएंगे
मस्ती में रहना है
दामन क्या भिगोना है
फूलों ने  जब
ये कहा जो हँसकर
कांटो में तो उगना है
बचकर भी जाना है
खुश रहकर जीना है
हँसते हुए जाना है
कैसी भी हो डगर चाहे
चलते ही जाना है
जान लिया जिसने
ये ‘राज ‘ है मस्ती का
कुछ लेकर नही आये
खो कर क्या जाना है

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