कर्मचन्द ‘केसर’
ग़ज़ल
हालात तै मजबूर सूँ मैं।
दुनियां का मजदूर सूँ मैं।
गरीबी सै जागीर मेरी,
राजपाट तै दूर सूँ मैं।
कट्टर सरमायेदारी नैं।
कर दिया चकनाचूर सूँ मैं।
लीडर सेक रह्ये सैं रोटी,
तपदा होया तन्दूर सूँ मैं।
मेरे नाम पै खावैं लोग,
आपणे हक तै दूर सूँ मैं।
भोरा भी नां कदर सै मेरी,
फाइलां म्हं मसहूर सूँ मैं।
घर म्हं कोन्या फूट्टी कोड्डी,
दिल का धनी जरूर सूँ मैं।
बेसक सै तन मेरा जर-जर,
मन तै तो भरपूर सूँ मैं।
‘केसर’ अपणे दिल नैं पूछ,
तेेरे तै क्यूँ दूर सूँ मैं।
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