हरियाणवी ग़ज़ल
दिल की बात सुनाऊँ क्यूकर।
अपणे जखम दिख्याऊँ क्यूकर।
रिसवतखोरी चली कसुत्ती,
अपणा काम कराऊँ क्यूकर।
सास बहू म्हं रहै लड़ाई,
इनका न्यां करवाऊँ क्यूकर।
दारू डूँहड उजाड़े भाई,
किस-किस नैं समझाऊँ क्यूकर।
आप्पे म्हं गलतान रहैं सब,
मैं की राड़ मकाऊँ क्यूकर।
परत लोभ की चढ़ी नजर पै,
हक की रोटी खाऊँ क्यूकर।
लोग कहैं यू पागल होर्या,
अपणे फरज निभ्याऊँ क्यूकर।
‘केसर’ पै बिसवास रहया ना,
अपणे राज बताऊँ क्यूकर।