कर्मचन्द ‘केसर’
ग़ज़ल
सीळी बाळ रात चान्दनी आए याद पिया।
चन्दा बिना चकौरी ज्यूँ मैं तड़फू सूँ पिया।
तेरी याद की सूल चुभी नींद नहीं आई,
करवट बदल-बदल कै मेरी बीती रात पिया।
उर्वर धरती बंजर होज्या जोते बोये बिना,
हरे धान सूखज्यां सैं बिन पाणी के पिया।
साम्मण के म्हं बादल गरजैं बिजली लस्क रहयी,
मद जोबण की झाल उठैं मन डोल्लै सै पिया।
सुन्ने-सुन्ने लाग्गैं सैं घर और गाम मनैं,
किते जी नां लाग्गै सै मैं जाऊं कड़ै पिया।
चकवे बिना चकवी सून्नी घोड़ी असवार बिना,
मिरग बिना कस्तूरी सून्नी टोह्वै कौण पिया।
तीज त्योहार रह्ये फीक्के मन रसनाई कोन्या,
ओढण पह्रण सिंगरण के नां रहये चाअ पिया।
मछली की ढालां लोचूँ ‘केसर’ तेरे बिना,
बिरहा का हो दरद कसुत्ता लेगा जान पिया।