हरियाणवी ग़ज़ल
अफरा-तफरी मच रीह् सै संसार म्हं।
रूलदे फिरैं हँस काग्याँ की डार म्हं।
जिनकी करणी-कथनी म्हं सै फर्क घणा,
यें किसे लोग आ गए सरकार म्हं।
सारे रोले मिल-जुल कै सुलझा ल्यो,
मतना पड़ो फालतु की तकरार म्हं।
जेब म्हं हो दाम खरीदण आले की,
मिलदा के नी आज बता बजार म्हं।
गबन कतल अपह्रण डकैती करणिएं,
देक्खो चाल्लैं बत्ती आली कार म्हं।
बेसक करकै देख लिए रै ‘केसर’
नां रहे नुकसान कदे भी प्यार म्हं।