हरियाणवी ग़ज़ल
बुराई तै बस वो बच्या सै।
जिसनैं हर का नाम रट्या सै।
दीवै गेल्याँ लाकै यारी,
देख पतंगा जल्यास पड़्या सै।
नाव पाप की अधर डूबजै,
धरम का बेड़ा सदा तर्या सै।
खुशी जीत की जाणै सै वो,
हार का जिसनै मजा चख्या सै।
औरां पै क्यूँ दोष धरै सै,
खेत बाड़ नैं तिरा चर्या सै।
दया धरम की कूण सै खाली,
माया तै घर अंट्या पड़्या सै।
सबका राम रुखाला सै वो,
जिसनै यू संसार रच्या सै।
मतना डूँह्ड उजाड़ै ‘केसर’
मुसकल तै यू सांग रच्या सै।