रुक्खाँ जिसा सुभा बणा ले – कर्मचंद केसर

हरियाणवी ग़ज़ल


रुक्खाँ जिसा सुभा बणा ले।
सबनै हँंसकै गले लगा ले।
जीणा भी तो एक कला सै,
सोच-समझ कै टेम बित्या ले।
राजा दुखिया रंक सुखी सै,
सुपने म्हं चै महल बणा ले।
गैर नहीं सै कोय जगत म्हं,
सबनैं अपणा मीत बणा ले।
मतना रीस करै औरां की,
जेब देखकै काम चला ले।
कुदरत आग्गै जोर चलै नां,
माणस कितना जोर लगा ले।
बुढ़ापा तंग करैगा पगले,
इसका भी कोय जतन बणाले।
अपणा पेट भरैं सैं सारे,
‘केसर’ सबकी खैर मना ले।
 
 

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