मुसाफिर जाग सवेरा होग्या – कर्मचंद केसर

हरियाणवी ग़ज़ल


मुसाफिर जाग सवेरा होग्या।
चाल आराम भतेरा होग्या।
कलजुग म्हं सच चढ़ग्या फांसी,
झूठे के सिर सेहरा होग्या।
सारा कुणबा मिलकै रह था,
इब सबका अलग बसेरा होग्या।
तेरे रुप का सूरज लिकड़या,
प्यार का नवां सवेरा होग्या।
निनाणमें के चक्कर म्हं देक्खो,
माणस कती लुटेरा होग्या।
चिन्ता गरीब बाप की भाज्जी,
उसका पूत कमेरा होग्या।
सास कहै बहू चिन्ता नां कर,
यू राजपाट सब तेरा होग्या।
खाकै बखत के थाप्पड़ ‘केसर’
ठाली फिरदा कमेरा होग्या।
 
 

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