गलती इतनी भारी नां कर – कर्मचंद केसर

 हरियाणवी ग़ज़ल


 
गलती इतनी भारी नां कर।
रुक्खां कान्नी आरी नां कर।
मीठी यारी खारी नां कर,
दोस्त गैल गद्दारी नां कर।
नुमाइस की चीज नहीं सै,
औरत नैं बाजारी नां कर।
परोपकार के करले काम,
ठग्गी-चोरी, जारी नां कर।
लीडर सै तो कर जनसेवा,
स्वारथ की सरदारी नां कर।
फेर देस गुलाम हो ज्यागा,
क्लम नैं दरबारी नां कर।
रोज बटेऊ आए रहंगे,
इतनी खातरदारी नां कर।
सबर का फल मीठा हो सै,
इतनी मारा-मारी नां कर।
भला मणस दीक्खै सै ‘केसर’,
इस गेलै हुशियारी नां कर।
 

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