नफरत नै भी प्रीत समझ ले – कर्मचंद केसर

हरियाणवी ग़ज़ल


नफरत नै भी प्रीत समझ ले,
सबनैं अपणा मीत समझ ले।
लय, सुर, ताल सहीं हों जिसके,
जिन्दगी नै वा गीत समझ ले।
आदर तै मिले पाणी नैं भी,
दूध मलाई सीत समझ ले।
दुनियां खोट्टी, आप्पा आच्छा,
यास इस जग की रीत समझ ले।
गिरकै सवार होया करैं सैं,
हार नैं अपणी जीत समझ ले।
माणस जात तै प्रेम करै जो,
उसनैं तौं जग जीत समझ ले।
माँ-बाप गुरुवां की डांट नैं,
‘केसर’ ब्याह् के गीत समझ ले।

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