सादी भोली प्यारी माँ – कर्मचंद केसर

हरियाणवी ग़ज़ल


सादी भोली प्यारी माँ,
सै फुल्लां की क्यारी माँ।
सबके चरण नवाऊं मैं,
मेरी हो चै थारी माँ।
सारी दुनियां भुल्ली जा,
जाती नहीं बिसारी माँ।
बालक नैं सूक्खे पावै,
गीले पड़ै बिच्यारी माँ।
हँस-हँस लाड लड़ावै सै,
कोन्या बोलै खारी माँ।
सारे जग का आग्गा ले ले,
बच्चयाँ आग्गै हारी माँ।
पाल-पोष कै बड़े करै,
समझै जिम्मेदारी माँ।
आए गए महमानां की,
करती खातरदारी माँ।
कुणबे म्हं एक्का राक्खै,
सै इक बंधी बुहारी माँ।
त्याग, दया अर ममता की,
मूरत सबतै न्यारी माँ।
उतरै कौन्या करज कदे,
रहगी तिरी उधारी माँ।
बार-बार जाऊँ सूँ मैं,
तेरै पै बलिहारी माँ।
आवै सै जद याद मनै,
होज्या सै मन भारी माँ।
इसा जमाना आर्या सै,
बणग्यी आज बिच्यारी माँ।
बहू-बेटे तो मौज करैं,
फिरै बखत की मारी माँ।
भारत माँ सै सबकी माँ,
न समझो सरकारी माँ।
‘केसर’ फरज करै पूरा,
जद भी आवै बारी माँ।

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