कर जोड़ खड़ी सूं प्रभु लाज राखियो मेरी – पं. लख्मीचंद

जुए में सब हारने के बाद युधिष्ठर ने द्रोपदी को भी दांव पर लगा दिया. भरी सभा में अपमान होने लगा तो द्रोपदी एक ऐतिहासिक सवाल किया जो अभी तक अनुत्तरित है।बहुत ही खूब रागनी में पं. लख्मीचंद ने इस स्थिति का वर्णन किया। भारतीय समाज की पितृसत्तात्मक बनावट का स्पष्ट संकेत भी है।

कर जोड़ खड़ी सूं प्रभु लाज राखियो मेरी
मर्यादा को भूल गए दरबारां मैं शोर होग्या

दादा भीष्म द्रोणाचारी का हिरदा क्यूं कठोर होग्या
दुर्योधन दुशासन शकुनी कौरवों का जोर होग्या
अधर्मी राजा की प्रजा गैल दुख पाया करै
पाप की कमाई पैसा काम नहीं आया करै
सताए जां आप जो कोए ओरां नै सताया करै
हे कृष्ण हे कृष्ण कहकै ऊंचे सुर तै टेरी

सभा के मैं प्रश्र किया धीरे-धीरे फिरण लागी
कांपता शरीर रोई कौरवों से डरण लागी
भीष्म की तरफ कुछ इशारा सा करण लागी
नीति को बिसारा पिता क्यूं बैठे चुपचाप कहो
हारी सूं अक ना हारी सूं खोल कै नै साफ कहो
ये भी काम आपका है तोल कै इंसाफ कहो
मेरे प्रश्र का उत्तर दो थारी इतनी दया भतेरी

धर्म के विषय की बात समझकै बताई जा सै
धन की भरी थैली के अपणे हाथ से रिताई जा सै
दूसरे की चीज के जूए मैं जिताई जा सै
धर्मसुत बैठे जहां मैं के बेईमान हूंगी
आदि शक्ति फैसले पै बोलती जबान हूंगी
बीर का शरीर चीर मैं भी तो इंसान हूंगी
ये कौरव चीर तारणा चाहवैं करकै हेरा फेरी

लंका पै चढ़ाई करी सीता से मिलाए राम
जरत्कारु फेर मिले छोड़ गए घर गाम
अनुसूईया अहिल्या तारा प्रेम से रटैं थी नाम
दमयन्ती की टेर सुणी नल को मिलाया फेर
देवयानी नै रट्या सखी कुए मैं गई थी गेर
सावित्री की बिनती सुणी पल की ना लगाई देर
कहै लखमीचन्द भजन बिन यो तन माटी की ढेरी

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