ये अलग बात बच गई कश्ती -बलबीर सिंह राठी

 ग़ज़ल

बलबीर सिंह राठी

ये अलग बात बच गई कश्ती,
वरना साजि़श भंवर ने ख़ूब रची।

कह गई कुछ वो बोलती आँखें,
चौंक उट्ठी किसी की ख़ामोशी।

हम तो लड़ते रहे दरिन्दों से,
तुम ने उन से भी दोस्ती कर ली।

दिन भी होगा किसी के आँगन में,
अपने चारों तरफ तो रात रही।

यूँ भी अक्सर हुआ है मेरे घर,
रात, दिन भर उदास बैठी रही।

छेड़ दी दिल की दास्तां हमने,
वरना ये रात किस तरह कटती।

धूप खिलने की जब हुई उम्मीद,
रात आँगन में आ के बैठ गई।

इन अंधेरों में हम तो भूल गये,
कब उजाला हुआ या धूप खिली।

घर में लाता रहा मैं उम्मीदें,
आ बसी फिर भी कैसे मायूसी।

ये अंधेरे युँही नहीं फैले,
कोई साजि़श कहीं पे होती रही।

मुत्मइन1 हम थे बंद गलियों में,
राह वरना निकल तो सकती थी।

उम्र हम से न पूछिए कैसे,
एक सूरत की ज़ुस्तज़ू2 में कटी।

हम कहाँ तुझ को ढूँढने जाते,
ज़लज़लों ने तिरी ख़बर दे दी।

जो दिलों में जगा सके जादू,
वो सदा तो है सिर्फ ‘राठी’ की।
—————————

  1. संतुष्ट 2. तलाश

More From Author

आईना

सॉनेट सत्रह – पाब्लो नेरुदा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *