ग़ज़ल
कौन कहता है कि तुझको हर खुशी मिल जाएगी,
हां मगर इस राह में मंजि़ल नई मिल जाएगी।
अपनी राहों में अंधेरा तो यक़ीनन है मगर,
हम युँही चलते रहे तो रोशनी मिल जाएगी।
इस क़दर सीधा है, ये रिश्तों का सारा सिलसिला,
मेरे अफ़साने में तेरी बात भी मिल जाएगी।
यूँ अंधेरी बंद गलियों में खड़े हो किस लिये,
बढ़ के दीवारों को तोड़ों, राह भी मिल जाएगी।
अपनी मंजि़ल है घने गहरे अंधेरों से परे,
ये अंधेरे पार कर लो, रोशनी मिल जाएगी।
अपनी तन्हाई के घेरों से निकल कर देख लो,
जो फ़क़त ख़्वाबों में है वो जि़न्दगी मिल जाएगी।