उसे गर अपनी मंजि़ल का पता है,
तो फिर अंधी गली में क्यूँ खड़ा है।
कोई बाज़ार में बिकने गया है,
वो बिकने के लिए पैदा हुआ है।
हक़ीक़त उसको कैसे मान लें हम,
बुरी नीयत से जो तुम ने कहा है।
जो लोगों का लहू तक बेचता था,
वही अब अपनी बस्ती का ख़ुदा है।
यही दस्तूर चल निकला है शायद,
जो औरों को गिरा दे वो बड़ा है।
जो था बदनाम पहले शहर भर में,
वो अब सब का चहेता हो गया है।
उसे क्या रास आएंगे उजाले,
जो बचपन से अंधेरों में पला है।
पिघल जाना था तेरा मोम का घर,
मगर वो धूप से बचता रहा है।
वही रोके हुए है अपना रस्ता,
जो मलबा इतनी सदियों से पड़ा है।
किसे देती है रस्ता बंद गलियाँ,
कोई क्या सोच कर उनमें गया है।
इन्हें तुम से है क्या उम्मीद ‘राठी’
तुम्हें लोगों ने क्यों घेरा हुआ है।
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- उसे गर अपनी मंजि़ल का पता है – बलबीर सिंह राठी