ग़ज़ल
नई होगी तो उनकी राह कुछ दुश्वार भी होगी,
जुनूँ वालों ने लेकिन अपनी मंजि़ल ढूँढ ली होगी।
सफ़र पर जब चले तो साथ सूरज ले लिया हमने,
हमें मालूम था आगे अंधेरी रात भी होगी।
भटकता फिर रहा था जो युँ ही वीरान राहों पर,
भला ऐसे मुसाफ़िर को कहाँ मंजि़ल मिली होगी।
किसी की तेज़ रफ़्तारी से कब मंजि़ल बदलती है,
अगर रस्ता वही होगा तो मंजि़ल भी वही होगी।
जलाया है किसी का घर ये फ़रज़ी नेक बन्दों ने,
अंधेरी बंद गलियों में उसी की रोशनी होगी।
बिगाड़ा है इसे हमने भी यूँ तो ख़ूब ही लेकिन,
जहन्नुम की तरह दुनिया तो सदियों में बनी होगी।
ये मुमकिन है तिरा हमदर्द भी अब कोई हो जाए,
तिरी रूदादे-ग़म1 आख़िर किसी ने तो सुनी होगी।
बढ़ाए हैं क़दम हमने सफ़र में साथ ‘राठी’ के
मिलेगी लाजि़मी मंजिल जो उनकी रहबरी होगी।
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- दु:ख की कहानी