ग़ज़ल
ख़ामोश किस लिये हो, तूफ़ां भरी हवाओ,
हर पेड़ को झिंझोड़ो-हर शाख़ को हिलाओ।
सरगोशियों1 में कब तक करते रहोगे बातें,
हर बात राज़ की भी खुल कर हमें बताओ।
जो हम सफ़र थे अपने वापिस न लौट जायें,
तुम अपने कारवां में उनको भी अब मिलाओ।
माज़ी2 का बोझ दिल पर कब तक लिये फिरोगे,
तुम अपने ग़म का क़िस्सा पूरा सुना के जाओ।
लाते हो तुम कहाँ से ऐसी उदास ख़बरें,
यारो कभी तो कोई अच्छी ख़बर सुनाओ।
जो डींग मारते थे बदलेंगे वो ये दुनिया,
अब वक्त आ गया है उनको भी आज़माओ।
ख़ुश फ़हमियों को छोड़ो बिफरा हुआ है दरिया,
कश्ती को हो सके तो तूफान से बचाओ।
सुनता नहीं जो कोई फिर क्यों सुना रहे हो,
क्या लाजि़मी है सब को रूदादे-ग़म3 सुनाओ।
दावा था ये तुम्हारी दुनिया बनेगी जन्नत,
क्यों बन गई से दोज़ख़, ऐ-वक़्त के ख़ुदाओ।
उसके बगैर यारो, जमती नहीं है महफ़िल,
अब अपनी महफ़िलों में ‘राठी’ को भी बुलाओ।
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- कानाफूसी 2. अतीत 3. दु:ख की कहानी