ग़ज़ल


इस गुलिस्तां में ख़िज़ाँ1 को रास्ता किसने दिया,
दोस्तो! मुझ को चमन उजड़ा हुआ किस ने दिया।
ऊंचे-नीचे रास्ते हमवार करने के लिए,
मेरे जैसे शख़्स को ये ज़लज़ला2 किस ने दिया।
जुगनुओं ने आज मांगा है उजालों का हिसाब,
ये बताओ, उन को सूरज का पता किस ने दिया।
तुम ने कांटे बो दिए होंगे हमारी राह में,
वरना हम को रास्ता कांटो भरा किस ने दिया।
रंजो-ग़म तो ख़ूब हम को उस ख़ुदा ने दे दिए,
इतना पत्थर दिल मगर हम को ख़ुदा किसने दिया।
ख़्वाब तो हम देखते हैं ख़ूब ही रंगों भरे,
फिर भी हम को ये जहां बदरंग सा किस ने दिया।
कारवां को रोक लेता है वो हर इक मोड़ पर,
हम को घबराया हुआ ये रहनुमा3 किसने दिया।
जाल से किस ने ये फैलाये मेरे चारों तरफ,
और सफ़र में रास्ता उलझा हुआ किसने दिया।
किसने हम से दोस्तो, जन्नत-सी दुनिया छीन ली,
ये जहाँ आखिर हमें दोज़ख़4 नुमा किस ने दिया।
मुफ्तख़ोरों को ही दी जाएँगी सारी राहतें,
ये निहायत, ना मुनासिब फ़ैसला किसने दिया।
ख़ौफ़ से जो कांप उठता है भंवर को देखकर,
हम को ‘राठी’ इतना बुज़दिल ना-ख़ुदा5 किस ने दिया।
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  1. पतझड़ 2. भूचाल 3. नेता 4. नरक  5. खेवट (मल्लाह)

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