बचना – सुरेश बरनवाल

कविता


बचना
हरेक से बचना
रास्ते के पत्थर और अंधेरे
तो तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ेंगे यकीनन
पर बचना
बचना
दु:ख और दूरी तो तुम भी सह लोगी
बहादुर
बचना बड़ा मुश्किल है
बदमिजाज और बदतमीज निगाहों से
क्योंकि इनके सिरे से गायब होता है सच
बचना सिरे से ही बचना
और बसना।
साभार-जतन दिसम्बर 99

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