सीमाएँ – लिन अंगर

लिन अंगर (अनुवाद- दिनेश दधीचि)

तुम्हारे गिर्द नहीं घूमता है ब्रह्माण्ड.
अंतरिक्ष की नृत्यशाला में घूमते हुए ये ग्रह और सितारे
तुम्हारे लघु जीवन से बिलकुल बाहर एक-दूसरे के साथ
करते हैं नर्तन.
गुरुत्वाकर्षण और ऋतुएँ तुम्हारी पकड़ से बाहर हैं;
हवा और पानी पर भी तुम्हारा कोई नियंत्रण नहीं.
तो क्यों न इन्हें जाने ही दिया जाए?
तुम काल के प्रवाह में वैसे ही तैर सकते हो, जैसे पानी में शार्क,
बिना किसी बेचैनी के और बिना रुके,
केवल अपने सहज तत्त्व को भीतर समाये और उसी में समाये हुए,
फिर इसके अलावा कुछ और करने का ढोंग किस लिए?
संसार पोर-पोर से तुम्हारे अंदर प्रवेश करता है
और इस से पहले कि
तुम्हारी साँस तुम्हें इस संसार में मुक्त कर सके, वह तुम्हारे रक्त में
घुल-मिल जाता है.
क्या तुम समझते थे कि तुम्हारी त्वचा से बनी कमज़ोर सी ये चौहद्दी
तुम्हारे लिए दीवार बन सकेगी?
ध्यान से सुनो. हर परमाणु
अपनी अलग ख़ास धुन में गुनगुना रहा है.
तुम निश्चय ही एक संगीत-रचना हो.
तुम्हारे ख़याल से
ये ग्रह-नक्षत्र
नाचते-नाचते किसकी धुन पर गा रहे हैं?

Lynn Unger 

Boundaries

The universe does not
revolve around you.
The stars and planets spinning
through the ballroom of space
dance with one another
quite outside of your small life.
You cannot hold gravity
or seasons; even air and water
inevitably evade your grasp.
Why not, then, let go?
You could move through time
like a shark through water,
neither restless nor ceasing,
absorbed in and absorbing
the native element.
Why pretend you can do otherwise?
The world comes in at every pore,
mixes in your blood before
breath releases you into
the world again. Did you think
the fragile boundary of your skin
could build a wall?
Listen. Every molecule is humming
its particular pitch.
Of course you are a symphony.
Whose tune do you think
the planets are singing
as they dance?

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