अंतिम शब्द – मैथ्यू आर्नल्ड

मैथ्यू आर्नल्ड (1822-1888) अनुवाद दिनेश दधीचि

अपनी सँकरी शय्या में लेटो घुस कर
अब जाओ, कुछ मत और कहो .
व्यर्थ रहा आक्रमण तुम्हारा, सब पहले जैसा है
आखिर तुम्हें टूटना है; कुछ और नहीं टूटा है!
अरसे से जारी विवाद यह बंद करो अब!
हंस बतख होते हैं, बतखें राजहंस होती हैं.
जैसा भी वे चाहें, समझें, चाहे जो स्वीकार करें
थके हुए हो तुम; अच्छा है, शांत ही रहो, चुप बैठो.
हारे तुम उनके बोलों से; फुफकारे वे; तुम्हें फाड़ डाला चुटकी में
तुमसे पहले तुमसे बेहतर लोगों का भी ऐसा ही था हश्र हुआ
उनकी गोली चली; हुई आवाज़ और वे चले गये.
जोशीला आक्रमण किया, फिर मुँह की खायी आख़िर में.
तुम भी एक आख़िरी हल्ला बोलो; बस, फिर चुप रहना.
आएँगे जब कभी सिकंदर, जब भी
नादानी के दुर्ग ध्वस्त होंगे, वे आएँगे
तब देह तुम्हारी उसी दुर्ग की दीवारों के निकट मिलेगी!

Matthew Arnold (1822-1888)

The Last Word

Creep into thy narrow bed,
Creep, and let no more be said!
Vain thy onset! All stands fast.
Thou thyself must break at last.
Let the long contention cease!
Geese are swans, and swans are geese.
Let them have it how they will!
Thou art tired; best be still.
They out-talk’d thee, hiss’d thee, tore thee!
Better men fared thus before thee;
Fired their ringing shot and pass’d,
Hotly charged —- and sank at last.
Charge once more, then, and be dumb!
Let the victors, when they come,
When the forts of folly fall,
Find thy body by the wall!

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