डब्ल्यू० एच० ऑडेन (1907-1973) अनुवाद – दिनेश दधीचि
इतना तय है कि जब वह अपने मिशन के लिए पहुँचा, तो उसके दिल में कम-से-कम कोई पक्षपात या पूर्वाग्रह नहीं था,
क्योंकि उसने वो सरज़मीं कभी देखी ही नहीं थी, जिसका उसे विभाजन करना था-
दो समुदायों के बीच, जो कट्टर बन कर
एक-दूसरे के ख़िलाफ़ खडे़ थे।
उनका खान-पान अलग था
और उनके देवताओं की आपस में बनती नहीं थी।
लंदन में उसे समझाया गया था,
“वक़्त बहुत कम है;
आपसी समझौते या तर्कपूर्ण बहस की गुंजाइश ख़त्म हो चुकी है।
हल सिर्फ़ यही बचा है कि बटवारा कर दिया जाए।
जैसा वायसराय के ख़त से आप समझ जाएँगे, उनका ख़याल है कि आप उनके संग जितना कम दिखाई दें, उतना ही बेहतर होगा।
लिहाज़ा हमने आपके रहने का दीगर इंतज़ाम किया है।
हम आपको सलाह-मशविरे के लिए
चार न्यायाधीश दे सकते हैं — दो मुस्लिम और दो हिंदू — लेकिन आख़िरी फ़ैसला आपका ही होगा।”
एकांत भवन में बंद हुआ वह।
भवन के बाग़ में हत्यारों को दूर रखने के लिए दिन-रात पुलिस का सख़्त पहरा था।
जुट गया वह काम में।
काम था लाखों की क़िस्मत का फ़ैसला करना।
जो नक्शे थे उसके पास, सभी पुराने थे
और जनगणना के आँकड़े तो लगभग निश्चित रूप से ग़लत थे।
लेकिन उनकी जाँच करने का वक़्त ही कहाँ था?
न ही कोई वक़्त था विवादित क्षेत्रों का निरीक्षण करने का।
मौसम भयानक रूप से गर्म था
और पेचिश के चलते उसे लगातार दौड़ते रहना पड़ रहा था।
इसके बावजूद सिर्फ़ सात हफ़्तों में यह काम हो गया।
सीमाओं के फ़ैसले हो गये और एक महाद्वीप का बटवारा हो गया।
भला हुआ या बुरा मालूम नहीं।
अगले ही दिन वह इंग्लैंड की तरफ़ जा रहे जलपोत में सवार था,
जहाँ जा कर वह जल्दी से इस सारे मामले को भुला सकता था।
जैसा कि किसी भी अच्छे वकील को करना ही चाहिए।
फिर, जैसा उसने क्लब में बताया,
वापस तो उसे आना ही नहीं था।
उसे गोली मार दिये जाने का डर जो था।
W.H. Auden (1907-1973)
Partition
Unbiased at least he was when he arrived on his mission,
Having never set eyes on the land he was called to partition
Between two peoples fanatically at odds,
With their different diets and incompatible gods.
“Time,” they had briefed him in London, “is short. It’s too late
For mutual reconciliation or rational debate:
The only solution now lies in separation.
The Viceroy thinks, as you will see from his letter,
That the less you are seen in his company the better,
So we’ve arranged to provide you with other accommodation.
We can give you four judges, two Moslem and two Hindu,
To consult with, but the final decision must rest with you.”
Shut up in a lonely mansion, with police night and day
Patrolling the gardens to keep the assassins away,
He got down to work, to the task of settling the fate
Of millions. The maps at his disposal were out of date
And the Census Returns almost certainly incorrect
But there was no time to check them, no time to inspect
Contested areas. The weather was frightfully hot
And a bout of dysentery kept him constantly on the trot,
But in seven weeks it was done, the frontiers decided,
A continent for better or worse divided.
The next day he sailed for England, where he could quickly forget
The case, as a good lawyer must. Return he would not,
Afraid, as he told his Club, that he might get shot.