हरियाणा में पंजाबी भाषा व साहित्य की वस्तुस्थिति – कुलदीप सिंह

हरियाणा प्रांत तब अस्तित्व में आया, जब एक नवम्बर 1966 को पंजाब को तीन भागों में विभाजित किया गया। इस बंटवारे से सिर्फ तीन (पंजाब, हरियाणा, हिमाचल) भूखंडों ने ही अपना अस्तित्व ग्रहण नहीं किया, अपितु इससे इनकी संस्कृति और भाषा को भी एक नया स्वरूप व पहचान मिली।

हरियाणा में ठेठ हरियाणवी बोलने वाले लोगों को पंजाबी संगीत की धुनों पर थिरकते हुए देखा जा सकता है, परन्तु पंजाबी भाषा को बोलने व समझने में असमर्थता उनके चेहरे से साफ झलकती है। परन्तु पंजाबी खानपान, पहरावे, पंजाबी संगीत के प्रति दीवानगी हरियाणवी लोग खूब पसंद करते हैं। इसी तरह हरियाणा में रहने वाले पंजाबी भाषी लोग हरियाणवी को अच्छी तरह से समझते हैं और जरूरत पड़ने पर हरियाणवी बोली व मुहावरे को अच्छी तरह से बोलते भी है। हरियाणवी संगीत की धुनों पर उन्हें भी थिरकते हुए देखा जा सकता है।

किसी भी राष्ट्र का भविष्य केवल उसकी प्राकृतिक सम्पदा, संसाधनों, उद्योगों, विज्ञान व तकनीकी पर ही आश्रित नहीं होता, अपितु उसकी शिक्षा पर भी निर्भर करता है। अगर वह शिक्षा उस राष्ट्र व राज्य के लोगों द्वारा बोले जाने वाली मातृभाषा में होगी तो वहां के लोगों का भविष्य और भी ज्यादा खुशहाल होगा। रसूल हमजातोव मातृभाषा के संबंध में लिखते हैं कि ‘बच्चों के लिए इससे बड़ी बदकिस्मती और क्या हो सकती है कि बच्चे उस भाषा से वंचित रह जाएं, जो भाषा उसकी मां बोलती है। जिंदगी में सबसे ज्यादा बच्चा मां से ही सीखता है।’

पंजाबी भाषा, संस्कृति व पंजाबी लोगों के परिश्रम की लोकप्रियता  पूरी दुनिया में है। इसी कारण कनाडा, मलेशिया आदि देशों ने पंजाबी भाषा को दूसरी भाषा का दर्जा भी दिया हुआ है। अन्य देशों में भी पंजाबी भाषा के अध्ययन-अध्यापन व शोध के पुख्ता प्रबंध के लिए पंजाबी विभाग खोले गए हैं। हरियाणा प्रांत में पंजाबी दूसरी भाषा का दर्जा रखती है, परन्तु इस भाषा को सीखने की सुविधा समूचे हरियाणा में नहीं, बल्कि केवल वहीं है, जहां पंजाबी भाषी रहते हैं और वं भी सिर्फ सरकारी स्कूलों  में।  सरकार से अनुदान प्राप्त स्कूलों, सीबीएसई व अन्य प्राईवेट स्कूलों में यह सुविधा नगण्य है। कालेजों में पंजाबी भाषा की पढ़ाई की सुविधा भी सिर्फ उन्हीं क्षेत्रों में है, जहां पंजाबी भाषी रहते हैं। कालेजों में यह सुविधा सिर्फ बीए के पाठ्यक्रम में ही है जहां विद्यार्थी ज्यादातर ऐच्छिक विषयों व कहीं-कहीं जरूरी विषय के दौरान पंजाबी भाषा को पढ़ सकते हैं। एम.ए. पंजाबी विषय की पढ़ाई केवल करनाल के एक कालेज, यमुनानगर में दो कालेजों, अम्बाला के सरकारी कालेज, सिरसा के सरकारी कालेज व फतेहाबाद के एक कालेज में है। जहां तक विश्वविद्यालयों का संबंध है तो सिर्फ कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र में ही एम.ए. पंजाबी, एम.फिल. पंजाबी, पीएच.डी. की पढ़ाई करवाई जाती है। अन्य विश्वविद्यालयों में पंजाबी भाषा के विभाग तक नहीं हैं। यहां तक कि सिरसा में स्थित चौ. देवीलाल विश्वविद्यालय में भी पंजाबी भाषा का विभाग अभी तक नहीं खोला गया, जबकि सिरसा पंजाबी बहुल क्षेत्र है। विश्वविद्यालयों में अनुवाद के कोर्स में हिन्दी से अंग्रेजी व अंग्र्रेजी से हिन्दी की सुविधा तो है, परन्तु पंजाबी भाषा के प्रति उदासीन रवैया है। स्कूलों, कालेजों, विश्वविद्यालयों में पंजाबी अध्ययन एवं अध्यापन को बढ़ावा देने के साथ क्षेत्रीय स्तर पर पंजाबी रेडियो चैनल, टीवी चैनल को खोलने की तरफ भी कदम उठाए जाने की जरूरत है।

अक्सर हरियाणा में पंजाबी संस्था या विभाग को छोड़ कर और जितनी भी सरकारी या गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा जितनी भी भाषण व लेखन प्रतियोगिताएं होती हैं, उसमें अभिव्यक्ति का माध्यम सिर्फ हिन्दी या अंग्रेजी भाषा ही होता है, परन्तु पंजाबी भाषा के प्रति यह रवैया नकारात्मक होता है। जिसके कारण पंजाबी भाषी विद्यार्थी इस तरह की प्रतियोगिताओं में भाग लेने से वंचित रह जाते हैं।

हरियाणा में पंजाबी भाषा की स्थिति को समझने के लिए दो महत्वपूर्ण बिन्दुओं को पंजाबी भाषा व साहित्य के साहित्यिक संदर्भ में देखना व समझना बहुत ज्यादा जरूरी है। पहला तो यह  कि ‘हरियाणा का पंजाबी साहित्य और दूसरा यह कि ‘हरियाणा में रचित  पंजाबी साहित्य’। जब हम ‘हरियाणा का पंजाबी साहित्य’ कहते हैं,  तो इससे अभिप्राय है कि वह साहित्य जिसमें पंजाबी साहित्य की अपनी एक सांस्कृतिक और भाषायी विशेषता हो। परन्तु क्या इस स्थिति में हम समुचित पंजाबी साहित्यकारों व उनकी साहित्यिक कृतियों को ‘हरियाणा का पंजाबी साहित्य’ की श्रेणी में रख सकते हैं। जवाब लगभग ‘ना’ में मिलेगा, क्योंकि हरियाणा प्रांत के गठन के पश्चात यहां पर जितने भी साहित्यकारों ने साहित्यिक सृजना की उनकी मूल पृष्ठभूमि या तो पश्चिमी पंजाब की है या फिर पूर्वी पंजाबी की या फिर बंटवारे से पहले के पंजाब की। इसलिए उनकी रचनाओं का भाषायी व सांस्कृतिक आधार पंजाबी है, परन्तु उसमें हरियाणा की भोगौलिक स्थिति, संस्कृति व भाषा की झलक इसके विशुद्ध रूप में देखने को नहीं मिलती। इस वस्तुस्थिति को ध्यान में रखकर अगर हम यह कहें कि हरियाणा में जो पंजाबी साहित्य रचा जा रहा है, उसे ‘हरियाणा का पंजाबी साहित्य’ कहने की बजाए ‘हरियाणा में रचित पंजाबी साहित्य’ कहा जाए तो ज्यादा तर्कसंगत व उपयुक्त लगता है, क्योंकि इसमें हरियाणा की भोगौलिक स्थिति, संस्कृति व बोली की ठेठता व पेशकारी का अभाव है। यह तर्क इसलिए भी विचारणीय हो सकता है कि हरियाणा में जब तक जितने भी पंजाबी साहित्यकार हुए हैं और जिनका जन्म हरियाणा बनने से पहले हुआ, इस दृष्टि से हरियाणा इनका कर्म क्षेत्र रहा है जन्मभूमि नहीं। इसलिए उनके द्वारा रचित पंजाबी साहित्य में हरियाणा की मूल समस्याओं, संस्कृति, हरियाणवी मुहावरे व बोली का अभाव देखने को मिलता है। इस दृष्टि से सही मायने में हरियाणा में रचे जा रहे पंजाबी साहित्य को ‘हरियाणा का पंजाबी साहित्य’ कहने की बजाए ‘हरियाणा में रचित पंजाबी साहित्य’ कहना ज्यादा उपयुक्त लगता है। परन्तु भविष्य में हरियाणा प्रांत में  पंजाबी साहित्यकारों की जो नई पीढ़ी आ रही है, जिनका जन्म क्षेत्र, शिक्षा क्षेत्र व कर्म क्षेत्र भी हरियाणा है, उनके द्वारा रचित पंजाबी साहित्य में यहां की संस्कृति व भाषा का हरियाणवी मुहावरों में देखने को मिल रहा है, जो हरियाणा में पंजाबी भाषा की स्थिति व विकास और हरियाणा के पंजाबी साहित्यकारों के लिए एक शुभ संकेत हैं। स्कूलों, कालेजों में अध्ययनरत विद्यार्थियों में ज्यादातर गिनती ठेठ हरियाणवी बोलने वाले विद्यार्थियों की होती है। यह पंजाबी भाषा के विकास के लिए शुभ संकेत है।

पंजाबी-हरियाणवी व हरियाणवी-पंजाबी की एक नई इबारत हरियाणा में रचित पंजाबी साहित्य में लिखी जा रही है, जो हरियाणा के पंजाबी साहित्य को फलने-फूलने में अहम् भूमिका अदा करेगी। हरियाणा में अगर पंजाबी भाषा को समृद्ध बनाना है, तो यहां के जनजीवन को विशेष तौर पर पंजाबी साहित्य में साहित्यिक सृजना का आधार बनाना होगा। तभी हरियाणा में रचित पंजाबी साहित्य की विशेष पहचान बनेगी।

डा. कुलदीप सिंह, सहायक प्रोफेसर, पंजाबी विभाग,
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र

स्रोतः  सं. सुभाष चंद्र,  देस हरियाणा (नवम्बर-दिसम्बर, 2015), पृ. 32 से 33

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