जब य’ मालूम है बस्ती की हवा ठीक नहीं- आबिद आलमी

ग़ज़ल

जब य’ मालूम है बस्ती की हवा ठीक नहीं
फिर अभी इसको बदल लेने में क्या ठीक नहीं

मेरे अहबाब की आंखो में चमक दौड़ गई
हंस के जब मैंने कहा हाल मेरा ठीक नहीं

दिल का होना ही बड़ी बात है कैसा भी हो
मैं नहीं मानता यह टूटा हुआ ठीक नहीं

अपनी आंखों से जो हालात की देखी तस्वीर
एक भी रंग य’ मालूम हुआ ठीक नहीं

ज़हर मिल जाए दवा में तो जायज़ है यहां
हां मगर ज़हर में मिल जाए दवा ठीक नहीं

उसकी फ़ितरत ही सही चीख़ना-चिल्लाना मगर
मैं समझता हूं नगर में वो बला ठीक नहीं

ख़ुद ही डसवाता था इक सांप से लोगों को वो
ख़ुद ही कहता था कि ये खेल ज़रा ठीक नहीं

खैंच लेते हैं ज़बां पहले ही मुंसिफ़ ‘आबिद’
कहने-सुनने की अदालत में वबा ठीक नहीं

अहबाब : दोस्तों, फ़ितरत : स्वभाव, मुंसिफ़ : न्यायकर्ता, वबा : महामारी

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आबिद आलमी

परिचय
आबिद आलमी का पूरा नाम रामनाथ चसवाल था। वो आबिद आलमी नाम से शायरी करते थे। उनका जन्म गांव ददवाल, तहसील गुजरखान, जिला रावलपिंडी पंजाब (पाकिस्तान) में हुआ। उन्होंने अंग्रेजी भाषा साहित्य से एम.ए. किया। वो अंग्रेजी के प्राध्यापक थे और उर्दू में शायरी करते थे। उन्होंने हरियाणा के भिवानी, महेंद्रगढ़, रोहतक, गुडग़ांव आदि राजकीय महाविद्यालयों में अध्यापन किया। वो हरियाणा जनवादी सांस्कृतिक मंच के संस्थापक पदाधिकारी थे।

उनकी प्रकाशित पुस्तकें दायरा 1971, नए जाविए 1990 तथा हर्फे आख़िर (अप्रकाशित)

आबिद आलमी की शायरी की कुल्लियात (रचनावली) के प्रकाशन में प्रदीप कासनी के अदबी काम को नकारा नहीं जा सकता। उन्होंने आबिद की तीसरी किताब हर्फ़े आख़िर की बिखरी हुई ग़ज़लों और नज़्मों को इकट्ठा किया। ‘अल्फ़ाज़’ शीर्षक से रचनावली 1997 और दूसरा संस्करण 2017 में प्रकाशित।

आबिद आलमी जीवन के आख़िरी सालों में बहुत बीमार रहे। बीमारी के दौरान भी उन्होंने बहुत सारी ग़ज़लें लिखीं।

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