ग़ज़ल
सीने में आग भी है, नज़र में हवा भी है
फिर रेज़ा-रेज़ा मरने से कुछ फ़ायदा भी है
दरिया की बात करता है लेकिन य’ पूछ लो
लहरों के साथ-साथ कभी वो बहा भी है
मंदिर उजड़ गया तो पुजारी बिखर गए
कहते थे बच निकलने का ये रास्ता भी है
मक़्तल में बैठे हमें रात हो गई
जल्लाद! इस क़तार का कोई सिरा भी है
मुंसिफ़ ने कह दिया कि यहीं खैंच लो ज़ुबां
मैं कहता गया कि सुनो कुछ कहा भी है
‘आबिद’ को संगसार करेंगे मचा है शोर
फिर उसके बुत लगाएंगे ऐसी हवा भी है
रेज़ा-रेज़ा : थोड़ा-थोड़ा, मक़्तल : वधस्थल, क़त्लगाह, मुंसिफ : न्यायकर्ता, इन्साफ करने वाला, संगसार : पत्थर मार-मारा कर काम तमाम करना