ग़ज़ल

होगा नगर में ख़ूब तमाशा गली-गली
दौड़ेगा जब वो आग का दरिया गली-गली

वो एक-इक फ़सील का गिरना नगर-नगर
वो इक अजीब शोर का उठना गली-गली

जब से हुआ है खेल मदारी का शहर में
फिरता है इक हजूम लुटा सा गली-गली

सूरज नगर में एक हवेली में क़ैद है
आज़ाद घूमता है अंधेरा गली-गली

ये एक ख़ौफनाक ख़ामोशी मकां-मकां
वो इक सदा का चीख़ते फिरना गली-गली

दुबके पड़े हैं बंद घरों में नगर के लोग
फिरता है कब से एक दरिन्दा गली-गली

होता अगर मेरा भी किसी घर से वास्ता
‘आबिद’ मैं यूं न फिरता अकेला गली-गली

फ़सील : नगर के चारों ओर की दीवार, हुजूम : भीड़, खौफनाक : डरावनी

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By आबिद आलमी

परिचय आबिद आलमी का पूरा नाम रामनाथ चसवाल था। वो आबिद आलमी नाम से शायरी करते थे। उनका जन्म गांव ददवाल, तहसील गुजरखान, जिला रावलपिंडी पंजाब (पाकिस्तान) में हुआ। उन्होंने अंग्रेजी भाषा साहित्य से एम.ए. किया। वो अंग्रेजी के प्राध्यापक थे और उर्दू में शायरी करते थे। उन्होंने हरियाणा के भिवानी, महेंद्रगढ़, रोहतक, गुडग़ांव आदि राजकीय महाविद्यालयों में अध्यापन किया। वो हरियाणा जनवादी सांस्कृतिक मंच के संस्थापक पदाधिकारी थे। उनकी प्रकाशित पुस्तकें दायरा 1971, नए जाविए 1990 तथा हर्फे आख़िर (अप्रकाशित) आबिद आलमी की शायरी की कुल्लियात (रचनावली) के प्रकाशन में प्रदीप कासनी के अदबी काम को नकारा नहीं जा सकता। उन्होंने आबिद की तीसरी किताब हर्फ़े आख़िर की बिखरी हुई ग़ज़लों और नज़्मों को इकट्ठा किया। ‘अल्फ़ाज़’ शीर्षक से रचनावली 1997 और दूसरा संस्करण 2017 में प्रकाशित। आबिद आलमी जीवन के आख़िरी सालों में बहुत बीमार रहे। बीमारी के दौरान भी उन्होंने बहुत सारी ग़ज़लें लिखीं।

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