ग़ज़ल
होगा नगर में ख़ूब तमाशा गली-गली
दौड़ेगा जब वो आग का दरिया गली-गली
वो एक-इक फ़सील का गिरना नगर-नगर
वो इक अजीब शोर का उठना गली-गली
जब से हुआ है खेल मदारी का शहर में
फिरता है इक हजूम लुटा सा गली-गली
सूरज नगर में एक हवेली में क़ैद है
आज़ाद घूमता है अंधेरा गली-गली
ये एक ख़ौफनाक ख़ामोशी मकां-मकां
वो इक सदा का चीख़ते फिरना गली-गली
दुबके पड़े हैं बंद घरों में नगर के लोग
फिरता है कब से एक दरिन्दा गली-गली
होता अगर मेरा भी किसी घर से वास्ता
‘आबिद’ मैं यूं न फिरता अकेला गली-गली
फ़सील : नगर के चारों ओर की दीवार, हुजूम : भीड़, खौफनाक : डरावनी