सतबीर पाई

सतबीर पाई

जिला कैथल में पाई गांव में सन् 1965 में साधारण परिवार में जन्म। रागनी लेखन और गायन में आरम्भ से दिलचस्पी। दलित वर्ग में राजनीतिक जागरुकता के लिए अपनी कला का प्रयोग। राजेन्द्र बडगूजर ने सम्पूर्ण रचनाओं को एकत्रित करके प्रकाशित किया है।

1

आंख खोल कुछ मुंह तै बोल
सुण कित तेरा ध्यान गया
यू लुट तेरा सब सामान गया
 
इन लोगां नै मिलकै नै चाल कसूती चाल्ली रै
ईष्र्या और द्वेष भर्या फेर फूट तेरे मैं डाल्ली रै
ईब तलक ना होया मेळ बीत कै सदी बहुत सी जा ली रै
सारा दिन करै काम शाम तक फेर भी रहै कंगाली रै
फैंक जाल तेरा हड़प माल वो बण धनवान गया
आंख खोल कुछ मुंह तै बोल
 
करकै नै हेरा-फेरी तेरी बुद्धि करी मलिन दिखे
फिरै तबाही भरता मरता कर दिया साधनहीन दिखे
दिया उसी नै धोखा जिसपै करता रहा यकीन दिखे
रह्या सत्ता तै दूर सदा इस गफलत मैं लौ लीन दिखे
दळ्या रै बहुत तू छळ्या रै बहुत न्यू बण बेजान गया
आंख खोल कुछ मुंह तै बोल
 
होग्या तू कंगाल चाल कै आग्गै सत्यानाश होया
बेचारा बेसहारा बणग्या फेर गैर का दास होया
नासमझी मैं शूद्र लोगो खत्म थारा इतिहास होया
थारी आपस की रही फूट झूठ के ऊपर न्यू विश्वास होया
शैतानी कर बेइमानी कर न्यू शैतान गया
आंख खोल कुछ मुंह तै बोल
 
तू ही बता दे सोच समझ कै तेरा जमीर कडै़ सै रै
होया करैं थे बादशाही के ताज और तीर कडै़ सै रै
नैतिकता मैं तेरा बराबर सांझा सीर कड़ै सै रै
पाईवाला प्रचारी देखो सतबीर कड़ै सै रै
हारी मैं अलाचारी मैं मिट नाम निशान गया
आंख खोल कुछ मुंह तै बोल

2

झूठ कपट छल बेइमानी तै कर्या मुकम्मल राज तनै
भरकै ऐसा भेस देश के लोग करे मोहताज तनै
 
झूठ बोल कै इन लोगां का कर दिया बेड़ा गरक देखे
सिंह तुला कुंभ मीन मेष कोई राशि कर दी करक देखे
झूठे देखै हाथ बात मैं इसा गेर दिया फरक देखे
गरदिस चढ़ा दई लोगां पै बणा स्वर्ग और नरक  देखे
आप रहा सतर्क देखे दिये तार झूठ के जहाज तनै
 
कपटी बणकै कपट राख्या ना साच्ची बात बताई
ये रहगे लोग शराफत मैं तू करण लग्या चतुराई
भीतर काळा रोप्या चाळा तेरी क्यूकर करूं बड़ाई
तेरे भीतर की समझ सके ना ये सादे लोग लुगाई
असल छुपा कै नकल दिखाई कपटी धोखेबाज तनै
 
छळिया बणकै छळने लाग्या भर भर ऐसे भरूप देखे
दे बणकै प्यारा आंख बदल कै चाल चालदे तुरूप देखे
सब तरियां तै काबू करले इसे छोड़ दिये गरुप देखे
इन लोगों की अकल फेर दी नकली दे दे परूफ  देखे
सतरंज और चालाकी तै यू काबू कर्या समाज तनै
 
करकै नै बेइमानी कितनी कट्ठीकरी जागीर देखे
मार कै हक सादे लोगां का बणग्या आप अमीर देखे
हम लोगों के गळ गळ मैं डाली गरीबी की जंजीर देखे
बेबस और लाचार करे पाई वाले सतबीर देखे
कोई साधन ना छोड्या यू ढूंढ्या इसा इलाज तनै

3

ज्योतिबा हुए उदास रै झट चाल नदी पै आगे
एरै न्यू मन मैं सोचण लागे
 
दुखी था शरीर घणी आत्मा थी परेशान
जिंदगी मैं खोऊं लेकिन सहा नहीं जाता अपमान
नहीं रास्ता अब जीणे का खोणी ए पड़ैगी जान
मौत के सिवाए कोई और तो इलाज नहीं
जिसमैं कोन्या इज्जत, चाहिए ऐसा समाज नहीं
पशु की सै कीमत पर मानव की कीमत आज नहीं
हीणा माणस रहै दास रै कितने रहबर फरमागे
 
ऐसी ना बीतै किसी मानव के साथ म्हं
ऐसे कड़वे बोल सुणे, बाकी ना गात म्हं
मार पड़ै खाणी इसी गया था बारात म्हं
घरां बुलाकै मेरे संग म्हं ऐसा व्यवहार किया
कितने थे बाराती साथी मेरे को दुत्कार दिया
नहीं बुलाते घर रह जाता कुछ ना सोच विचार किया
मैं सूं जीती लाश रै प्राण मेरे घबरागे
 
मार्या पिट्या और धमकाया जरा भी ना ख्याल किया
बिना बात मेरे गात का कितना बुरा हाल किया
शूद्र कहकै मेरे को क्यों बारात तै निकाल दिया
बता मेरी इज्जत के रहगी, के मानव से द्वेष नहीं
घटता है मान जहाँ बचता कुछ शेष नहीं
नाक कान एक के मेरा उनके जैसा भेष नहीं
कही बुरी और भली पचास रै कटुवचन छोल कै खागे
 
नदी के किनारे बैठ सोच रहा गौर तै
पूरा था बहाव जिसमैं पाणी चालै जोर तै
लम्बी और चौड़ी दिखै नदी चारों ओर तै
लगाणी छलांग चाहिए चौगिरदे नै नजर घुमाई
एक भोळी सी टोळी स्याहमी आती हुई दई दिखाई
पाई वाले सतबीर सिंह का एकदम ख्याल पलटाया भाई
पाट्टे देख लिबास झट उनके पीछे भागे

4

अनपढ़ राखी कोन्या बाकी तनै मेरी आत्मा मोसी मां
आज वक्त पै आण कै नै गाळ तेरे कोसी मां
 
होई नहीं थी स्याणी याणी थी जब मैं दुत्कार दई
करी पढ़ाई भाई नै मैं चौड़े काल्लर मार दई
मनै कुछ भी मालूम पाट्टी ना मौत के घाट तार दई
जै न्यू ए दुभांत राखणी थी तनै क्यूं ना जी तै मार दई
छोड़ तनै मंझधार दई इब किसनै ठहराऊं दोषी मां
 
दोधारी तलवार मेरी गर्दन पै लटक्या करती
सब कुणबे की नजरां मैं सबके खटक्या करती
दांत भींच मेरे बाळ खींच इस तरियां झटक्या करती
मैं खामोश रहूं थी जोश मैं तू ठा ठा पटक्या करती
तेरी इज्जत भटक्या करती या बात बड़ी अफसोसी मां
 
मैं घर का करती काम भाई पढऩे जाता था
मैं लाती हाथ किताबां कै मनै छोह मैं धमकाता था
तू सारी न्यूए सुणे जा थी मेरा कोई भी ना खाता था
उसे ज्यादा मिलती चीज अगर मेरा बाप शहर तै ल्याता था
मेरी घीटी पकड़ दबाता था, छुड़वाते अगड़ पड़ौसी मां
 
चल गोबर कूड़ा करले मरले मेरे सिर पै टोकरी धरती री
ज्यादा वजन मेरे सिर पै मैं ना बोलूं थी डरती री
मनै कंचनी डाण बताकै गाळ दिया न्यू करती री
तेरी कमी मनै ले डूबी मैं ना जीती ना मरती री
पाई वाले सतबीर पढ़ाई ईब दूर करै बेहोशी मां

5

लड़का लड़की एक फर्क क्यूं समझो सो नर नारी
भेजो रोज स्कूल कदे भी भूल करो ना भारी
 
लड़के नै अपणा समझो लड़की भी नहीं बिराणी
द्वेष करोगे लड़की तै या बात नहीं सै स्याणी
दोनों के अधिकार बराबर बांट करो क्यूं काणी
लड़का बेशक पढ़ै नहीं पर लड़की जरूर पढ़ाणी
ईब ना चाहिए देर लगाणी समझो जिम्मेवारी
 
इतना करती काम धाम फेर लड़की मजबूर किसी
गोबर कूड़ा करै रात दिन जिन्दगी चकनाचूर किसी
लड़के का पूरा आदर फेर लड़की ऊपर घूर किसी
मात पिता की नजरों से या रहै शिक्षा तै दूर किसी
शिक्षा बहुत जरूरी या कन्या कित ज्यागी बेचारी
 
लड़की तै दो घर सुधरैं सब नर नारी कुछ ख्याल करो
न्हाण धोण और पीण खाण तै पोषण सुथरी ढाळ करो
लड़की ना हो तंग ढंग तै पूरी देख और भाळ करो
कर दे रोशन नाम एक दिन ना पढ़ाणे की टाळ करो
देर नहीं फिलहाल करो सब लोग पढ़ाण की त्यारी
 
पढ़े लिखे बिन हर माणस न्यू पशु समान कह्या जा सै
शिक्षा तै बुद्धि आज्या वो फेर विद्वान कह्या जा सै
पढ़ लिखकै नै अफसर लागैं फेर इनसान कह्या जा सै
सतबीर सिंह प्रचारी का पाई अस्थान कह्या जा सै
न्यू बेज्ञान कह्या जा सै अनपढ़ता बुरी बिमारी

6

दे दी वोट सपोट तेरा यू जिसनै मान बढ़ाया
भीमराव नै भूल गया तू जिसनै शिखर चढ़ाया
 
वो भी वक्त याद कर जब तू दूर बिठाया जा था
भूल बिसर कै बैठ गया तै तुरंत हटाया जा था
कहकै तनै अछूत ऊत तेरा मान घटाया जा था
तेरे घर मैं चोरी करवाकै तेरा माल लुटाया जा था
आज चौधर का खुळिया राखै संग पित्तळ जड्या जड़ाया
 
न्हाण खाण की बात छोड़ तू राख्या दूर तलाबां तै
राजपाट और ठाठ बाट के राख्या दूर हिसाबां तै
पढण लिखण पै पाबंदी थी राख्या दूर किताबां तै
तेरे बाळ तलक ना काटे जां थे दू��� था होटल ढाबां तै
टाई बुरसेट जुराबां तै तेरा जिसने बैन तुड़ाया
 
करूं बता के जिक्र मनै याहे सोच खतम कर्रही
बोलूं कोन्या झूठ उठकै देख तेरे क्यूं ना जर्रही
सोच समझ तै काम लिया ना तेरी आत्मा न्यू मर्रही
इब फैलादे बात बाहर तेरी जीभ कहण तै क्यूं डर्रही
या चिंता चित नै न्यू चर्रही मुंह रहता सड्य़ा सड़ाया
 
लोहे की तरह महामानव नै तेरा सारा ए जर खतम कर्या
इतनी सारी जोखम ठाकै सारा ए कर खतम कर्या
संविधान मैं पूरी तरियां धाराएँ धर खतम कर्या
भय की जिन्दगी जीवै था तेरा सारा ए डर खतम कर्या
पाई वाले सतबीर सिंह नै भी गाकै गला पड़ाया
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

More From Author

सत्यवीर नाहड़िया की रागनियां

हबीब भारती

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *