गर बदल सकता है औरों की तरह चेहरा बदल ले- आबिद आलमी

ग़ज़ल

गर बदल सकता है औरों की तरह चेहरा बदल ले
वरऩा इस बहरूपियों के शहर से फ़ौरन निकल ले

हां बहुत नज़दीक है अब इब्तिदा शब के सफ़र की
फिर भी क्या जल्दी है यारो शाम का सूरज तो ढल ले

इतनी मामूली ख़ता की इस क़दर भारी सज़ा ��र
अब भी इक पल सोच यानी अब भी इक पल हाथ मल ले

दर्द पर दुनिया का हक़ है, सौंप दूंगा इस को लेकिन
इस में क्या है मेरे दिल में गर ये दो दिन और पल ले

देखने की चीज़ होगी मेरी कश्ती की रवानी
बर्फ़ ऊंची चोटियों पर और थोड़ी सी पिघल ले

इस से आख़िर मेरा रिश्ता जानता हूं कैसा होगा
छल रही है मुझ को दुनिया, और इक-दो रोज़ छल ले

तुम को वादी में कोई बुतसाज़ मिल जाए, है मुमकिन
चोटी पर पत्थर का पत्थर ही न रह जाए, फिसल ले

इब्तिदा : शुरूआत, शब : रात, बुतसाज़ : मूर्तिकार

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आबिद आलमी

परिचय
आबिद आलमी का पूरा नाम रामनाथ चसवाल था। वो आबिद आलमी नाम से शायरी करते थे। उनका जन्म गांव ददवाल, तहसील गुजरखान, जिला रावलपिंडी पंजाब (पाकिस्तान) में हुआ। उन्होंने अंग्रेजी भाषा साहित्य से एम.ए. किया। वो अंग्रेजी के प्राध्यापक थे और उर्दू में शायरी करते थे। उन्होंने हरियाणा के भिवानी, महेंद्रगढ़, रोहतक, गुडग़ांव आदि राजकीय महाविद्यालयों में अध्यापन किया। वो हरियाणा जनवादी सांस्कृतिक मंच के संस्थापक पदाधिकारी थे।

उनकी प्रकाशित पुस्तकें दायरा 1971, नए जाविए 1990 तथा हर्फे आख़िर (अप्रकाशित)

आबिद आलमी की शायरी की कुल्लियात (रचनावली) के प्रकाशन में प्रदीप कासनी के अदबी काम को नकारा नहीं जा सकता। उन्होंने आबिद की तीसरी किताब हर्फ़े आख़िर की बिखरी हुई ग़ज़लों और नज़्मों को इकट्ठा किया। ‘अल्फ़ाज़’ शीर्षक से रचनावली 1997 और दूसरा संस्करण 2017 में प्रकाशित।

आबिद आलमी जीवन के आख़िरी सालों में बहुत बीमार रहे। बीमारी के दौरान भी उन्होंने बहुत सारी ग़ज़लें लिखीं।

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