ग़ज़ल
नगर में सुनना-सुनाना अगर कभी होगा
हमारा जिक्र यक़ीनन गली-गली होगा
मिटा दो राहों की उलझन और इक डगर ले लो
य’ मंजि़लों का सफ़र य’ तय तभी होगा
इक एक दर्द से इतना बिला झिझक कह दो
हमारे दिल में उठेगा जो दायमी होगा
नगर-नगर का मुक़दर है लिख दिया मैंने
कि ज़लज़लों का गुज़र अब गली-गली होगा
जो लिखते फिरते हैं एक-इक मकां पे नाम अपना
उन्हें बता दो कि इक दिन हिसाब भी होगा
हमें भी वक्त ज़रूरत समझता है अपनी
कि एक दौर तो ‘आबिद’ हमारा भी होगा
दायमी : स्थायी, टिकाऊ : ज़लज़ले : भूकम्प