रामफल सिंह जख्मी
जिला हिसार के गंगणखेड़ी गांव में 17 अक्तूबर, 1954 को जन्म। ज्ञान। औपचारिक शिक्षा नहीं मिली। साक्षरता अभियान के दौरान अक्षरज्ञान प्राप्त किया। रागनी, गीत गायन-लेखन में सक्रिय। 9 किस्से और सौ से अधिक मुक्तक रागनियां। सामाजिक भेदभाव, आर्थिक व लैंगिक शोषण रागनियों के मुख्य विषय। सिंचाई विभाग, हरियाणा में सेवा।
1
राजी खुशी की मत बूझै, बन्द कर दे जिक्र चलाणा हे
दिन तै पहल्यां रोट बांध कै, पडै़ चौक म्हं जाणा हे
देखूं बाट बटेऊ ज्यूं, कोये इसा आदमी आज्या
मनै काम पै ले चालै, ज्या बाज चून का बाजा
नस-नस म्हं खुशी होवै, जे काम रोज का ठ्याज्या
इसे हाल म्हं मनै बता दे, कौण सा राजी पाज्या
नहीं दवाई नहीं पढ़ाई, नहीं मिलै टेम पै खाणा हे
देखे ज्यां सूं मैं बाट काम की, सदा नहीं मिलता हे
एक महीने म्हं कई बार तो, ना मेरा चुल्हा जलता हे
बच्चां कानी देख-देख कै, मेरा काळजा हिलता हे
रहै आधा भूखा पेट सदा, न्यू ना चेहरा खिलता हे
तीस बरस की बूढ़ी दीखूं मैं, पड़ग्या फीका बाणा हे
कदे-कदे तो हालत बेबे, इस तै भी बद्तर हो ज्यां
दूध बिना मेरे बालक, काळी चा पी कै सो ज्यां
नहीं आवती नींद रात भर, चैन मेरा कती खो ज्यां
यो सिस्टम का जुल्म मेरी, जान के झगड़े झौ ज्यां
रिश्तेदार घरां आ ज्यां तो, पड़ ज्या सै शरमाणा हे
खाली डिब्बे पड़े घरां, ना एक जून का सामां हे
निठ्ल्ले लोग लूट-लूट कै, कठ्ठा कर रे नामा हे
वा हे रोज पहर कै जावै, पाट्या पूत पजामा हे
‘रामफल सिंह’ चक्कर खावै, मुश्किल गात थामा हे
मनै हकीकत पेश करी यो, मत ना समझो गाणा हे
2
क्यूं भीतर बैठी बाहर लिकड़ ले, पड़ी मुसीबत भारी सै
यो कर्या फैसला पंचायत नै, तेरे मारण की त्यारी सै
हे तेरे मारण का फैसला, होग्या पंचात म्हं
तनै बतावण आई मैं, फर्क ना पावै बात म्हं
सुण एक तरफा फरमान, बाकी रही ना गात म्हं
दिन का उड़ग्या चैन, नींद ना आवै रात म्हं
हथियार उठा रे हाथ म्हं, जो नर और नारी सैं
म्हारी खाप का फैसला, फिलहाल हो लिया
खत्म करो छोरी नै, सबका ख्याल हो लिया
मरद, लुगाई, बूढ़ा, बच्चा सब लाल हो लिया
सफाई, इसा बुरा हाल हो लिया
हो लिया, खोटा कीणा छोरी म्हारी सै
तनै खत्म करण को, सारे त्यार हो लिए
नहीं चलै तेरी चाहे, कितने राग झो लिए
सारी खोल सुणा द्यूं, एक बै सांकळ खोलिए
किते पा ज्या जगह तो, अपणी जान लको लिए
काटै वो जिसे बो लिए, ईब क्यूं पछता री सै
तेरी समझ म्हं आवै, वैसा खेल कर लिए
हिमाती-साथी, अपणी गेल कर लिए
जै तूं लडऩा चाहवै तो, पैनी सेल कर लिए
किते अच्छा मिलै वकील, उस तै मेल कर लिए
डरै तो बहुत घणे मर लिए, ईब ‘जख्मी’ की बारी सै
3
इस स्वंतत्र देश म्हं, हो देश म्हं
क्यूं भुगतै बीर गुलामी
जब लड़की का जन्म होवै, घर मोहल्ले म्हं मातम छावै क्यूं
दादा-दादी मां अर बाबू, देख कै नाक चढ़ावैं क्यूं
माल बिगाना कह कै नै, कुरड़ी का धन बतलावैं क्यूं
चलैं औरों के आदेश म्हं, हो आदेश म्हं
होर्या म्हारी आंख्यां के साहमी
इस स्वतंत्र देश म्हं
दारू की बोतल के ऊपर, फोटू छपै लुगाई की
धर्मशाळा होटल के ऊपर, फोटू छपै लुगाई की
बुरे काम टोटल के ऊपर, फोटू छपै लुगाई की
रहै आठों पहर क्लेश म्हं हो क्लेश म्हं
ये कवि भी करैं बदनामी
इस स्वतंत्र देश म्हं
तेतीस परसेंट आरक्षण पे, ना कोई नेता बोल रह्या
कुर्सी को बचाणे खातर, अमृत म्हं विष घोल रह्या
कोर्ट म्हं भी लिए तराजू, पैसे म्हं न्याय तोल रह्या
वो जिक्र नही लवालेश म्हं, हो लवालेश म्हं
जिनां डोर राज की थामी
इस स्वतंत्र देश म्हं
सांगी, भजनी, गीतकार नै भी, ढाए जुल्म छोरियां पै
त्रिया विष की बेल कही, न्यू कमाए जुल्म छोरियां पै
मर्द गिर्या ज्यादा, दीखै कम, पाए जुल्म छोरियां पै
‘रामफल सिंह’ नए भेष म्हं, हो नए भेष म्हं
हो री आज नीलामी
इस स्वंतन्त्र देश म्हं
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रपट लिखवाण थाणे म्हं, के सोच कै आई तू
पंच तो परमेश्वर हों सै, क्यूं बांधै गेल बुराई तू
खाप की तो राज म्हं चालै, नहीं जाणती बातां नै
मेरी भी ये बदली करवा दें, कौण सहै इन खापां नै
इन की मार घणी बुरी, तू उघाड़ देख ले गातां नै
कौण रोकेगा तू बता, फेर बिना भीत की छातां नै
चौधर गेल्यां टक्कर ले, क्यूं इतना गिरकाई तू
ऊपर तक सै डर इन का, या इसी पंचात सैं
अफसर-नेता सब की डोर, इन लोगों के हाथ सैं
पत्ता ना हाल्लै इन बिना, मेरी के बिसात सै
इन की गेल्यां टक्कर ले, तेरी औरत जात सै
घर आगै आपणे हाथों, खोद रही सै खाई तू
गुस्से म्हं तनै ठा ली, नाश की टाटी सिर पै
औटण का ब्यौंत नहीं, सब मिठ्ठी-खाटी सिर पै
खाप पंचातां की आवै, कल तेरे लाठी सिर पै
मौत घालैगी आज या कल, तेरे काठी सिर पै
पुलिस भी थारे जिसी सै, बहुत मनै समझाई तू
पंचात गेल्यां खामखा तू, पंगा लेवै हे छोरी
ब्याह तो आखिर करवाणा, क्यूं मरण नै हो री
‘जख्मी’ भी तेरे संग दीखै, ठा हिम्मत की बोरी
मैं तो रपट लिख ल्यंूगा, क्यूं कर री सीना जोरी
ऊतां का ईलाज करण नै, के ले री बता दवाई तू
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(तर्ज:- मेरे सिर पै बंटा-टोकणी…)
ठा कै इतना भारी कसौला
बाड़ी का नुलांवां खेत
कड़ा-कड़ बाजै कसौला
दोनूं बच्चे साथ म्हं
पसीना आवै गात म्हं
गोड्यां चढ़ ज्या रेत
कड़ा-कड़ बाजै कसौला
जो पाणी पीवै पांथ म्हं
उनै फेर रळण दे ना साथ म्हं
ये पहले करवाते चेत
कड़ा-कड़ बाजै कसौला
जोर जेठ का घाम सै
लुआं म्हं सुकड्या चाम सै
आधी झड़ ज्या सेहत
कड़ा-कड़ बाजै कसौला
दिन रात पड्या रह खेत म्हं
बिना बिछायां रेत म्हं
हो ‘रामफल सिंह’ भी सैत
कड़ा-कड़ बाजै कसौला
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तू समझण जोगी स्याणी सै, सब कानूनां का बेरा सै
माणस मरवाण का परमट, कुण सा पंचाती लेर्या सै
जोड़ी का वर टोहवण, खुद सावित्री गई के ना
लीलो-चमन सुण्या होगी, थी उन की जोड़ी सही के ना
वासदेव गेल नार देवकी, बणा कै जोड़ी रही के ना
देश जांदा परदेश जाईयो, न्यु जोड़ी खातर कही के ना
तू इस फंद म्हं फही के ना, ना पसंद बांधर्या सेहरा सै
मैं कती समर्थन ना करती, या बिना मेल की शादी है
इस शादी के हौण म्हां, मेरी जिंदगी की बरबादी है
बोलण तक का टैम मिल्या ना, या किसी आजादी है
बीर निमाणी मर्द चौधरी, चाहे किसे नशे का आदी है
मर्द कितना अलबादी है, क्यूं म्हारी जान नै घेरा सै
इसा फरमान सुणाया सै, मनै बिल्कुल खारा लागै सै
आजाद देश म्हं जो होया करै, उस ते न्यारा लागै सै
अनपढ़-माणस कठ्ठे हो रे, मनै एक इशारा लागै सै
बिना पढ़े ना पता कत्ल पै, कुण सी धारा लागै सै
जो कानून तै भागै सै, तै हवालात म्हं डेरा सै
दुनिया का आधा हिस्सा मानै, यो कोए उपकार नहीं
जोड़ी का वर टोहण का भी, महिला को अधिकार नहीं
इज्जत का सिर धरवा भरोटा, कति जाण दें बाहर नहीं
पशुआं खातर कठ्ठे हो ज्यां, इस मुद्दे पै तकरार नहीं
मैं कति मरण ना त्यार नहीं, जा ‘जख्मी’ शान भतेरा सै
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धीरे-धीरे आ ज्यागी या, सब के ध्यान म्हं
अंधविश्वास ने फर्क गेर्या, म्हारे मिजान म्हं
हम कमा कै भी भूखे, म्हारे रहते होंठ सूखे,
म्हारे हाथ दूखे ईब, कर-कर कै काम नै,
रहे चूंट चाम नै ईब, मोड्डे हिन्दूस्तान म्हं
हम नहीं सोचते बात, ना लूटणिए के दीखैं हाथ,
न्यू तंग होया गात मेरा, ना समझूं चाल नै,
मैं काटूं उस डाल नै, बैठ्या जडै़ जहान म्हं
सोच समझ कै चालो ईब, सारे सलाह मिला ल्यो ईब,
अपणा मन समझा ल्यो ईब, बचा ल्यो खाल नै,
ना लुटण द्यो माल नै, सै गेंद थारे थान म्हं
छाण कै पीओ पाणी, ना तै हो कुणबा घाणी,
‘जख्मी’ बात कहै स्याणी, टोह्वो ख्याल नै,
म्हारे इस हाल नै, विष घोल द���या सम्मान म्हं
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कमेरे और लुटेरों की ईब, पाले बंदी होगी
लूटणिये ना खत्म हों, तब तक ना संधी होगी
लूटणिए तनै म्हारी गेल म्हं, मोटा जुल्म कमा राख्या,
म्हारी हड्डी-पसली, चाम, तनै खून घूंट कै खा राख्या,
थोड़ी म्हं ल्यो मौज मना, हमें ऐसा पाठ पढ़ा राख्या,
दिन-रात कमाणे आले को, तनै कमीण बता राख्या,
जो कवियों नै भी गा राख्या, सब झूठ पुलिंदी होगी
ईश्वर का अवतार हो राजा, ऐसी सीख सिखाई,
जो खुश हो कै राजा दे दे, उस की करो बढ़ाई,
कर्म करे ज्या फल की इच्छा, ना कर रै मेरे भाई,
गीता का उपदेश बता, इसी जुल्मी सैल चलाई,
पता लग्या या तेरी पढ़ाई, म्हारे गल की फंदी होगी
घोड़े के पाछै सरकार के आगै, बिल्कुल ना आणा चाहिए,
भला-बुरा जो ठ्या ज्या, तनै शीश झुकाणा चाहिए,
जिसकी चाबै बाकळी, गीत उसका गाणा चाहिए,
अपणी लूट बचावण नै, कई ढंग का बाणा चाहिए,
इसे प्रचार करणियां पै ईब, फुल पाबंदी होगी
उडै खड्या गण्डासा बाजैगा, बता मरता के ना करता,
भूख और बीमारी तै, कोए कुपोषण ते मरता,
मरणा सै तो लड़ कै मर, लड़े बिना ना सरता,
रण जीतै सूरा लड़ कै, ‘रामफल सिंह’ क्यूं डरता,
रहै तेज धार म्हारी तेग की, ना बिल्कुल मंदी होगी
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पाड़ बगा द्यो बहणा चुप की चुनरिया..
इस चुंदडी नै गले को घोट्या,जुल्म करे बोलण तै रोक्या
जकड़े राक्खी मैं, पिया की अटरिया
पाड़ बगा द्यो बहणा चुप की चुनरिया
इस चुनरी नै जुल्म गुजार्या, चुनरी म्हं दुबक्या हाथ हमारा
खूब पिटाया हमें सारी हे उमरिया
पाड़ बगा द्यो बहणा, चुप की चुनरिया
चुनरी पती परमेश्वर बोल्लै, जिंदा जली चुनरी के औल्हे
खड़ी-खड़ी हँस रही, सारी ऐ नगरिया
पाड़ बगा द्यो बहणा, चुप की चुनरिया
एक दिन चुनरी पड़ैगी बगाणी,मिल कै पडैग़ी तस्वीर मिटाणी
‘जख्मी’ की होगी, पूरी ऐ उमरिया
पाड़ बगा द्यो बहणा, चुप की चुनरिया
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सुख का सांस आवता ना, सै सब तरियां की लाचारी हे
मत ना बूझै बात गात म्हं, मर्ज बैठ गी भारी हे
एक रोज का जिक्र करूं, मैं कस्सी-टोकरी ले कै चाल्ली
सारा दिन ली बाट देख, मायूस हो कै बोहड़ी खाल्ली
खाली मां नै देख उड़ ज्या, बच्चों के चेहरे की लाली
न्यू कहैं सैं मां भूखे सां, चीज खत्म होई सारी हे
बेटे का कुरता पाट्या सै, बेटी पै मेरी सलवार नहीं,
एक स्यौड़ दो खाट मूंज की, कोए पिलंग निवार नहीं,
जाडे म्हं रजाई चाहवैं सां, पर बणता कोए विचार नहीं,
मेरी छाती के म्हं घा हो रे, नस-नस म्हं फिरी बीमारी हे
होग्या इसा हाल, ख्याल मेरा रहता ना ठिकाणे हे,
घर का ना मकान मेरे, बैठे सैं घर बिराणे हे,
जिस तन लगै वो ही जाणै, कौण दूसरा जाणे हे,
सिस्टम नै ली चैन चुरा, न्यूए रात लिकड़ ज्या सारी हे
दिन की उडग़ी चैन, मनै ना नींद रात नै आती है,
चलती नै त्वाळे आवैं, या भूख घणी सताती है,
इसे दर्द म्हं कोई हंस ले, ‘रामफल सिंह’ की छाती है,
किते टैम पै टूक मिलै ना, किते धन की अलमारी हे
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(तर्ज-आ लग ज्या गले दिलरूबा..)
काम करैं अर भूखे सौवें, यू कैसा दस्तूर
यो बिल्कुल नहीं मंजूर
काम करणिया भूखा रहै यहां, मारै मोज लफंगा क्यूं
कपड़े त्यार करणिया माणस, दखे फिरता नंगा क्यूं
जात-धर्म पै कट-कट मरते, रोज रहै सै दंगा क्यूं
डाकू-चोर, दगेबाजों के, दीखैं घणै हिमाती क्यूं
गरीब आदमी को तंग करदे, रपट लिखी ना जाती क्यूं
खून करण के ठेके ले रे, इसे बजैं पंचाती क्यूं
तालीबानी फैसला कर के, मारैं बिना कसूर
यो बिल्कुल नहीं मंजूर
म्हारे बाळक कुपोषण तै, मरते बिना दवाई क्यूं
म्हारे बाळक भूखे रह ज्यां, उन की दूध-मळाई क्यूं
म्हारे आळे अनपढ़ रह ज्यां, उन की अलग पढ़ाई क्यूं
म्हारे बाळक साईकिल ले रे, चोरां ते रखवाळ करैं
उन के बाळक गाड़ी ले कै, सड़कां पै आळ करैं
म्हारे बाळक सीमा ऊपर, बाडर की संभाळ करैं
उनके बाळक लूट मचा रे, म्हारे सपने चकनाचूर
या बिल्कुल नहीं मंजूर
माणस नै माणस ना समझैं, बाजे इसे अन्यायी क्यूं
बाहण-बेटी की इज्जत तारैं, बाजे इसे कसाई क्यूं
थम हाथ पै हाथ धरे बैठे, थारै घणी समाई क्यूं
काम करणिऐ माणस का, टेक्या नाम कमीणा क्यूं
गरीब आदमी बोल सकै ना, मुश्किल सै जीणा क्यूं
विकास म्हं ज्यादा भागीदारी, फिर भी तू हीणा क्यूं
म्हारे हक सैं उन के काबू, हम राखे कोसों दूर
या बिल्कुल नहीं मंजूर
जहाज किराया सस्ता है, मोटर का महंगा भाड़ा क्यूं
म्हारी दांती-पाली खोस्सैं, जमींदार मन-पाड़ा क्यूं
कोये काजू और बदाम खावै, म्हारे चून का खाड़ा क्यूं
हम कामे हम हाथ जोडैं, वा क्यूं आंखें लाल करै
जब देखै गाळी दे दे, ना इज्जत का ख्याल करै
‘जख्मी’ का गडवाळा बण, मन मर्जी ते उराळ करै
तेरी जुल्म कहाणी छप ज्या, कल हो ज्या मशहूर
यो बिल्कुल नहीं मंजूर