मुझको जब ग़ौर से तकते हैं ज़माने वाले- आबिद आलमी

ग़ज़ल

मुझको जब ग़ौर से तकते हैं ज़माने वाले।
हों न हों लगते हैं तस्वीर बनाने वाले॥

वक़्त रख देगा तेरी पीठ पे शब का पहाड़।
बोझ चुपचाप अँधेरे का उठाने वाले॥

याद रखूंगा तुझे एक हक़ीक़त की तरह,
एक किस्से की तरह मुझको भुलाने वाले।।

रात की ओट लिए रोते हैं तन्हा-तन्हा,
दिन के जलवों में हज़ारों को हंसाने वाले॥

छुपती फिरती है यूं ही राह धुंधलकों में क्यों।
हम नहीं बीच में यूं लौट के जाने वाले

वो कोई और हैं जो देते हैं शब का पैग़ाम।
हम तो हैं सज़ा का ऐलान सुनाने वाले॥

मुद्दआ तेरा कुछ औरों से जुदा लगता है।
दास्ताँ एक ही हर बार सुनाने वाले॥

याँ से उतरेंगे, तो हम होंगे सहर के रथ पर।
हमको आई रात की सूली पे चढ़ाने वाले॥

हमने सदियों का सफ़र लम्हों में काटा ‘आबिद’।
जानें क्यों मोड़ पे अटके हैं ज़माने वाले॥

Avatar photo

आबिद आलमी

परिचय
आबिद आलमी का पूरा नाम रामनाथ चसवाल था। वो आबिद आलमी नाम से शायरी करते थे। उनका जन्म गांव ददवाल, तहसील गुजरखान, जिला रावलपिंडी पंजाब (पाकिस्तान) में हुआ। उन्होंने अंग्रेजी भाषा साहित्य से एम.ए. किया। वो अंग्रेजी के प्राध्यापक थे और उर्दू में शायरी करते थे। उन्होंने हरियाणा के भिवानी, महेंद्रगढ़, रोहतक, गुडग़ांव आदि राजकीय महाविद्यालयों में अध्यापन किया। वो हरियाणा जनवादी सांस्कृतिक मंच के संस्थापक पदाधिकारी थे।

उनकी प्रकाशित पुस्तकें दायरा 1971, नए जाविए 1990 तथा हर्फे आख़िर (अप्रकाशित)

आबिद आलमी की शायरी की कुल्लियात (रचनावली) के प्रकाशन में प्रदीप कासनी के अदबी काम को नकारा नहीं जा सकता। उन्होंने आबिद की तीसरी किताब हर्फ़े आख़िर की बिखरी हुई ग़ज़लों और नज़्मों को इकट्ठा किया। ‘अल्फ़ाज़’ शीर्षक से रचनावली 1997 और दूसरा संस्करण 2017 में प्रकाशित।

आबिद आलमी जीवन के आख़िरी सालों में बहुत बीमार रहे। बीमारी के दौरान भी उन्होंने बहुत सारी ग़ज़लें लिखीं।

More From Author

यूं तो हमारी राह में दरया कहीं न था – आबिद आलमी

उसकी ये शर्त की हर लफ़्ज़-लफ़्ज़ उसका हो- आबिद आलमी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *