न घर में चैन है उसको न ही गली में है-आबिद आलमी

न घर में चैन है उसको न ही गली में है,
मेरे ख़याल से वो शख्स ज़िन्दगी में है।

खटक रहा है निगाहों में आसमां कब से
इसे उठाके पटक दूं कहीं, य’ जी में है।

छुपा के बैठा है सूरज को कब से जो घर में
उसी का है वो मकां, वो जो रौशनी में है।

उन्हें पता न चला और वो रह गए पिंजर
मदारी चल दिया कहकर कमाल इसी में है।

हर इक खंडर को टटोलें फिर एक बार कि वो
सदायें देता है अब भी यहीं किसी में है।

फ़क़त हमारा ही इक घर था जिसमें ए ‘आबिद’
ये आग आग का सब शोर उसी गली में है।

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