स्वच्छ हवा और पानी एक बिजनेस बन गया है

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‘देस हरियाणा फिल्म सोसाइटी’ के माध्यम से हर महीने ही सामाजिक सरोकारों से जुड़ी फिल्मों का प्रदर्शन किया जाएगा और उस पर गंभीर चर्चा होगी जिससे हरियाणा में फिल्म देखने के नजरिये में गुणात्मक बदलाव आएगा। ‘डा. ओमप्रकाश ग्रेवाल अध्ययन संस्थान, कुरुक्षेत्र’ में (2 सितंबर 2018) पर्यावरण संकट पर केन्द्रित फ़िल्म ‘कार्बन’ की प्रस्तुति की और विभिन्न विद्वानों,बुद्धिजीवियों व नागरिकों ने फ़िल्म पर चर्चा में हिस्सा लिया। ‘कार्बन’ फिल्म गंभीर पर्यावरणीय मुद्दों जैसे ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन और हमारी दुनिया पर उनके प्रभाव से संबंधित है। वर्तमान में हो रहे पर्यावरण-प्रदूषण की वजह से हमारा भविष्य क्या होगा कल्पना के माध्यम से इसकी एक तस्वीर पेश करती है।

‘देस हरियाणा फ़िल्म सोसाइटी’ के तत्वावधान में ‘डा. ओमप्रकाश ग्रेवाल अध्ययन संस्थान, कुरुक्षेत्र’ में (2 सितंबर 2018) पर्यावरण संकट पर केन्द्रित फ़िल्म ‘कार्बन’ की प्रस्तुति की और विभिन्न विद्वानों,बुद्धिजीवियों व नागरिकों ने फ़िल्म पर चर्चा में हिस्सा लिया। ‘कार्बन’ फिल्म गंभीर पर्यावरणीय मुद्दों जैसे ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन और हमारी दुनिया पर उनके प्रभाव से संबंधित है। वर्तमान में हो रहे पर्यावरण-प्रदूषण की वजह से हमारा भविष्य क्या होगा कल्पना के माध्यम से इसकी एक तस्वीर पेश करती है। फिल्म में मुख्य भूमिका में यशपाल शर्मा, जैकी भगनानी,नवाजुद्दीन सिद्दिकी,प्राची देसाई हैं। इस संवेदनशील फ़िल्म का निर्देशन व स्क्रीन-प्ले किया  है मैथ्री बाजपेयी, रमीज इल्लम खान ने और संगीत दिया है सलीम-सुलेमान ने ।

फिल्म में दिखाया गया है कि वर्ष 2067 में दुनिया से ऑक्सीजन और पानी समाप्त हो गए और कार्बन की अधिकता के कारण हार्ट फैल हो रहे हैं । लोगों को सांस लेने लायक हवा और प्यास बुझाने के लिए पानी तक नहीं मिलता है। अब स्वच्छ हवा और पानी एक बिजनेस बन गया है। जिसे धरती पर माफिया के द्वारा चलाया जाता है। जैसे सोना और ड्रग का कारोबार होता है, वैसे ही कार्बन फिल्म में ऑक्सीजन का कारोबार दिखाया गया है। अमीर लोग मार्स पर चले गए है गरीब लोग यहा मर रहे हैं।

फ़िल्म की सार्थकता की बात करें तो वर्तमान में जिस तरह औद्योगिक कारखाने वायु और जल को प्रदूषित कर हैं, प्रकृति का दोहन हो रहा है पेड़ काटे जा रहे हैं। दिल्ली जैसे शहरों में जहरीली गैसों की वजह सांस लेना ही मुश्किल हो रहा है।  मानव जीवन सबसे महत्वपूर्ण है, लेकिन विकास की दिशा जीवन के लिए खतरा है । फ़िल्म को देखने के पश्चात दर्शकों के चेहरे पर वर्तमान और भविष्य को लेकर चिंता साफ दिखाई दे रही थी।

‘देस हरियाणा फ़िल्म सोसाइटी’ के सयोंजक विकास सल्याण ने तथ्यों के माध्यम से अपने विचार रखते हुए कहा कि महात्मा गांधी जी ने कहा था – हमारा भविष्य क्या होगा, यह हमारा वर्तमान तय करता है । वर्तमान तो आप तो इस समय आपके सामने है और भविष्य की एक धुँधली सी झलक हम “कार्बन” फ़िल्म के माध्यम से देख सकते है । फ़िल्म को देख कर हमारी रूह को एक बार के लिए डर तो लगता है पर हम सचेत कितने होंगे इस गंभीर विषय को लेकर यह अपने आप में एक अहम सवाल है ।  अंतराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017 में कार्बन डाई-ऑक्साईड़ CO2 का उत्सर्जन 32.5 गीगाटन पहुँच गया है । जोकि वर्ष 2016 के मुकाबले दोगुना है। दरअसल पेरिस जलवायु समझौता 2015 जो कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए हुआ था पर अमेरिका का उससे वाक-आऊट करना साफ प्रदर्शित करता है कि जलवायु से कुछ लेना देना नहीं है,  उसका मकसद है सिर्फ शक्तिशाली बने रहना।

 विश्व में कार्बन उत्सर्जन का 15 प्रतिशत योगदान अमेरिका देता है और अमेरिका कभी नहीं चाहता की वह किसी भी प्रकार से आर्थिक हानि उठाए क्योंकि पैरिस जलवायु समझोते में कार्बन का उत्सर्जन कम करने के लिए कोयला,परमाणु व तेलीय औद्योगिक कारखानों में कमी लाना और अमीर देश गरीब देशों के लिए 6.44 लाख करोड़ रूपये दिए जाने थे जिसमें अमेरिका का महज हिस्सा 600 करोड़ रूपये था । लेकिन समझौते के अनुसार अमेरीका को 2025 तक कार्बन का उत्सर्जन 25% घटाना था। लेकिन ट्रम्प ने हास्यास्पद बात कहते हुए इससे पल्ला झाड़ा कि इस समझौते से तो केवल चीन और भारत को फायदा होगा । अमेरिका के हट जाने से इस समझौते का नेतृत्व चीन ने किया और कार्बन का उत्सर्जन कम करने की बात कही। लेकिन अन्तराष्ट्रीय उर्जा एजेंसी के अनुसार 2017 में चीन का कुल कार्बन उत्सर्जन 1.7% बढकर 9.1 गीगाटन हुआ। इसी तरह 1997 में क्योटो जलवायु समझौता था जिसमें ग्रीन हाऊस गैसों का वैश्विक उत्सर्जन कम करना था लेकिन आकंड़ो के मुताबिक ग्रीन हाऊस गैसों कमी नहीं आई, बल्कि बढ़ोतरी ही हुई है ।

भारत की स्थिति है कि गंगा तो साफ करनी है पर गंगा को खराब करने वाले पूंजीपतियों के कारखानों को कुछ नही कहेंगे । देश-दुनिया में प्रकृति का दोहन कर पूंजीपति वर्ग अमीर बनता जी रहा है और इसका हर्जाना भुगतना पड़ रहा है गरीब आम जनता को ।

Environment Perfomance Index के द्वारा 23 फरवरी 2018 को एक आंकड़ा प्रस्तुत किया जिसमें 180 देशों को पर्यावरण को बचाने को लेकर रेंक प्रदान की गई। इसमें स्विटजरलेंड 87.42 स्कोर के साथ पहले स्थान पर और फ्रांस दूसरे स्थान पर था। भारत ने इस लिस्ट में अंतिम 5 में स्थान पाया जो 2016 के मुकाबले 36 स्थानों की गिरावट दर्ज की गई। इससे लगता है कि स्वच्छ भारत अभियान पर अरबों-खरबों रुपये के विज्ञापन खर्च करने का कोई लाभ नहीं हुआ।

एक व्यक्ति को जिंदा रहने के लिए अपने आसपास 16 बड़े पेड़ों की जरूरत होती है। एक रिपोर्ट के अनुसार 18 पेड़ काटे जाने पर सिर्फ एक ही पेड़ लगाया जा रहा है। पृथ्वी पर जीवन के लिए एक तिहाई पेड़ होने चाहे पर इस समय केवल 11%पेड़ ही संरक्षित है।

पर्यावरण के साथ यही सुलूक रहा तो केरल और केदारनाथ जैसी महात्रासदियों से बी भयानक स्थिति हो सकती है। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से अगर पृथ्वी के तापमान में 1% वृद्धि होती है तो समुन्द्र किनारे के राज्य जलमगन हो जाएंगे । अगर दो प्रतिशत तापमान की बढ़ोतरी होती है तो अंडमान-निकोबार, लन्दन, फ्रांस जैसे देश पानी में ही समा जाएंगे। पृथ्वी पर जीवन के लिए कितनी प्राकृतिक संसाधनों की आवश्यक्ता होती है उसका बैलेंस परिस्थितिक तंत्र (Ecological Footprint ) करता है। अगर उसमें गड़बड़ होती है तो प्रकृति अपने आपको संतुलित करती है और उस स्थिति में भारी तबाही भुगतनी पड़ती है।

अश्वनी दहिया ने कहा मैं सबसे पहले तो ‘देस हरियाणा’ की टीम को बधाई देना चाहूंगा। नीति के मामले में सरकारें पर्यावरण को लेकर संतोषजनक काम नही कर रही हैं। पर्यावरण का संकट हमारे लिए चिंता विषय है ।

डा.कृष्ण कुमार ने पर्यावरण के संकट को साहित्य से जोड़ते हुए बताया कि आचार्य हजारी प्रसाद  द्विवेदी के निबन्ध ‘नाखून क्यों बढते हैं’ का उदाहरण देते हुए कहा कि उन नाखूनों को तो हमने काट लिया जो बाहर निकल गए थे पर उन नाखूनों को कैसे काटेंगे जो हमारे अन्दर बढ़ते जा रहे हैं। हमारी मानवीय संवेदना समाप्त हो रही है और उसके स्थान पर हैवानीयत बढ़ रही है। हम अपने रहने के स्थान को ही कैसे उजाड़ रहे है इसका भी हमे कोई ध्यान नही है।

हरपाल शर्मा ने कहा कि पर्यावरण संकट बहुत दिनों से महसूस कर रहे हैं पर सरकार का रुख ऐसा है कि जैसे पर्यावरण संकट जैसी कोई समस्या है ही नहीं ।

गीता पाल ने कहा पर्यावरण को बचाने की बात तो सभी कर रहे हैं पर पर्यावरण को बिगाड़ कौन रहा है यह अहम सवाल है । इस सवाल को समझकर इसकी जाँच-पड़ताल करनी चाहिए और उसे चिन्हित कर उस पर बातचीत होनी चाहिए । एन.जी.ओ. की स्थापना कर पर्यावरण संकट से बचने के लिए प्रयास करने चाहिए ।

सुरेन्द्रपाल सिंह ने कहा विकास का वर्तमान मॉडल पर्यावरण को बिगाड़ रहा है। हरित क्रान्ति से लगा था कि देश में विकास होगा परन्तु उसने कैंसर जैसी भयंकर बीमारियों का उत्पादन किया । पर्यावरण की समस्या अमीर गरीब की समस्या नहीं, बल्कि पूरे मानव समाज की समस्या है ।

देस हरियाणा पत्रिका के संपादक डा.सुभाष चन्द्र ने कहा पर्यावरण का संकट हमारे सामने विकट समस्या है जिस तरह पानी कि किल्लत को देखते हुए पानी की बोतल तो लोग अपने साथ रखने लग गए हैं वो दिन भी अब दूर नही जब हमें ऑक्सीजन को भी साथ रखना पड़ेगा । डा. सुभाष चंद्र ने बताया कि ‘देस हरियाणा फिल्म सोसाइटी’ के माध्यम से हर महीने ही सामाजिक सरोकारों से जुड़ी फिल्मों का प्रदर्शन किया जाएगा और उस पर गंभीर चर्चा होगी जिससे हरियाणा में फिल्म देखने के नजरिये में गुणात्मक बदलाव आएगा। सभी दर्शकों का धन्यवाद किया और फिल्म के कलाकारों का, निर्देशक का भी धन्यवाद किया जिंहोंने पर्यावरण के प्रति संवेदित करने वाली फिल्म का निर्माण किया। इस परिचर्चा में सरिता चौधरी, सुनील कुमार थुआ, अजय शर्मा, राजविंद्र चंदी समेत कई लोगों ने फिल्म की सराहना करते हुए पर्यावरण के मुद्दे पर रचनात्मक कार्य करने के लिए बल दिया।

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