भारत के विकास के लिए भारतीय भाषाएं जरूरी क्यों – प्रो. जोगा सिंह

 विज्ञान की शिक्षा में चोटी पर रहने वाले देश: 2012 में विज्ञान की सकूल स्तर की शिक्षा में पहले 50 स्थान हासिल करने वाले देशों में अंग्रेजी में शिक्षा देने वाले देशों के स्थान तीसरा (सिंगापुर), दसवां (कनाडा), चौहदवां (आयरलैंड) सोहलवां (आस्ट्रेलिया), अठाहरवां (न्यूजीलैंड) और अठाईसवां (अमेरिका) थे. इन अंग्रेजी भाषी देशों में भी शिक्षा अंग्रेजी के साथ-साथ दूसरी मातृ भाषाओं में भी दी जाती है. पहले 50 में से बाकी 44 स्थान उन देशों ने हासिल किये थे जो अंग्रेज़ी में नहीं पढ़ाते. 2003, 2006 और 2009 में किए गए मुल्यांकानो में भी यही रुझान थे.

भारतीय विशवविद्याल्यों का दुनिया में स्थान: भारत का एक भी विश्वविद्यालय एशिया के पहले पचास में नहीं आता. इन पहले पच्चास विशवविद्याल्यों में एकाध में ही शिक्षा अंग्रेजी में दी जाती है.

अंग्रेजी भाषा और अंतरराष्ट्रीय कारोबार: सत्तरवीं सदी में (जब एकाध भारतीय ही अंग्रेजी जानता होगा) दुनिया के व्यापार में भारत का हिस्सा 22 (बाईस) प्रतिशत था जो 1950 में मात्र 1.78 भर रह गया था और अब केवल 1.50 प्रतिशत है.

क्या उच्चतर स्तर की विज्ञानों की शिक्षा भारतीय भाषाओं में हो सकती है: चिकित्सा विज्ञान के कुछ अंग्रेजी शब्द और इनके हिंदी समतुल्य यह स्पषट कर देंगे कि ज्ञान-विज्ञान के किसी भी क्षेत्र के लिए हमारी भाषाओं में शब्द हासिल हैँ या आसानी से प्राप्त हो सकते हैं: Haem – रक्त; Haemacyte – रक्त-कोशिका; Haemagogue – रक्त-प्रेरक; Haemal – रक्तीय; Haemalopia – रक्तीय-नेत्र; Haemngiectasis – रक्तवाहिनी-पासार; Haemangioma – रक्त-मस्सा; Haemarthrosis – रक्तजोड़-विकार; Haematemesis – रक्त-वामन; Haematin – लौहरकतीय; Haematinic – रक्तवर्धक; Haematinuria – रक्तमूत्र; Haematocele – रक्त-ग्रन्थि/सूजन; Haematocolpos – रक्त-मासधर्मरोध; Haematogenesis – रक्त-उत्पादन; Haematoid – रक्तरूप; Haematology – रक्त-विज्ञान; Haematolysis – रक्त-ह्रास; Haematoma – रक्त-ग्रन्थि। वास्तव में हरेक भाषा का शब्द-सामर्थ्य एक सा होता है क्योंकि जिन मूल तत्वों (धातु और उपसर्ग एवं परसर्ग) की गिनती लगभग एक सी है.

सफल शिक्षा के लिए भाषा पर दुनिया भर के विशेषज्ञों की राय: दुनिया भर के शिक्षा और भाषा विशेषज्ञों की राय और तजुर्बा भी यही बताता है कि शिक्षा सफलतापूर्वक केवल और केवल मातृ भाषा में ही दी जा सकती है.

विदेशी भाषा (जैसे अंग्रेजी) सीखने की सर्वोतम विधि: दुनिया भर में हुई खोज बताती है कि अगर शिक्षा एक सी हो तो मातृ भाषा माध्यम में शिक्षा हासिल करने वाला और विदेशी भाषा को एक विषय के रूप में पढ़ने वाला शिक्षार्थी विदेशी भाषा भी उस शिक्षार्थी से बेहतर सीखता है जिसे आरम्भ से ही विदेशी भाषा माध्यम में पढ़ाया गया हो.

भाषा के जीवन और विकास का शिक्षा के माध्यम होने से सम्बन्ध: आज के समय में किसी भी भाषा के जिन्दा रहने और विकास के लिए उस भाषा का शिक्षा का माध्यम होना आवश्यक है.

भारतीय संविधान और भारतीय भाषाएँ: भारतीय संविधान भी यही निर्देश देता है और हर भारतीय को यह हक़ देता है कि उसे अपनी भाषा में शिक्षा और सेवायें हासिल हों (देखिए धारा 347 और 350 ए).

अधिक जानकारी के लिए: भाषा के मामलों के बारे में दुनिया भर की खोज, विशेषज्ञों की राय और दुनिया की आज की भाषाई स्थिति के बारे में विस्तार में जानने के लिए ‘’भाषा नीति के बारे में अंतरराष्ट्रीय खोज: मातृ भाषा खोलती है शिक्षा, ज्ञान और अंग्रेज़ी सीखने के दरवाज़े’ दस्तावेज़ हिंदी, पंजाबी, तामिल, तेलुगू, मैथिली, ऊर्दू, और अंग्रेजी में  http://punjabiuniversity.academia.edu/JogaSingh  या www.bhaashachetnamanch.com  पते से पढ़ा जा सकता है। यह दस्तावेज़ पुस्तिका के रूप में प्राप्त करने के लिए नीचे दिए गए पते पर सम्पर्क किया जा सकता है (कीमत पंद्रह रुपए).

विनती: हमारी पुरज़ोर विनती है कि यहाँ बताए गए तथ्यों को जैसे भी संभव हो दूसरे भारतीयों के सामने लाकर मातृ भाषाओं और ऐसे में भारत के विकास के लिए यतनों में योगदान दें. मातृ भाषाओं की जय!

जारी कर्ता: भाषा चेतना मंच, चैंबर नंबर 229, यादविन्द्रा काम्प्लेक्स, जिला कचहरी, पटियाला – 147 001; मक्कजाल: www.bhaashachetnamanch.com;

विद्युत-डाक: bhaashachetnamanch@gmail.com;

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