बन्दा रिक्शा खींच रहा है – ओम सिंह अशफाक

ओमसिंह अशफाक 
1
नया-नया किसी गांव से आया
लगता है झिझका शर्माया
ना रहने का कोई ठौर ठिकाना
यूं शहर लगे उसको बेगाना
संदर—सुंंदर भवन बणे हैं
ना रहते उनमें कई जणे हैं
अभी, पास भवन के एक खड़ा है
(देखो) लगता कैसा बड़ा-बड़ा है
क्या बाहर निकल कोई कह सकता है?
हां, तू भी इसमें रह सकता है
बन्दा रिक्शा खींच रहा हैँ।
2
जब उजड़ गांव से शहर में आया
था, पहली नजर में उसको भाया
मुफ्त की टूंटी यहां चलती है।
दिन में भी बिजली जलती है?
चीजों की इ$फरात यहां है
अब गांव में ऐसी बात कहां है
शहर की तो है बात ही न्यारी-
खत्म हुई समझो दुश्वारी?
निश-दिन मेहनत रोज करूंगा
पीछे भी कुछ भेज सकूंगा
बन्दा रिक्शा खींच रहा है।
3
रिक्शे पर ही सो लेते हैं
फिल्म देख खुश हो लेते हैं
रेहड़ी पे खाना, खा लेते हैं
टूंटी पर ही नहा लेते हैं
सच्ची बात बता देते हैं
कभी पव्वा एक चढ़ा लेते हैं
फिर ना मच्छर भी काटे हैं
नींद में ठाठे-ही-ठाठे हैं!
फिक्र हमारी तुम ना करना
उस जालिम की नजर से बचना
नाम है जिसका ठाकुर रतना
पूरा होगा, एक दिन सपना
जी को अपने वश मेें रखना
बन्दा रिक्शा खींच रहा है!
4
शहर में वो अपवाद नहीं है
इकला ही बर्बाद नहीं है
जब मोड़ से उसने रिक्शा मोड़ा
लेबर चौक था-आगे थोड़ा
वहां फौज कमेरी खड़ी हुई थी
बाजू से बाजू अड़ी हुई थी।
कोई लिए हाथ में छैणी-हथौड़ी
कोई कूची-ब्रश और बांस की घोड़ी
कोई साथ लिए था, छोटी-सीढ़ी
कोई बेच रहा था, मूढ़ा-पीढ़ी
थी नजर किसी की गाहक पे पैनी
कोई पीता बीड़ी, मलता खैनी
अरे, भूख ने यहां पे ला पटका है
धंधा ना उसका पुश्तैनी,
ना ऊँचे कुल मेें जन्म हुआ
क्या इसीलिए उसे नीच कहा है?
बन्दा रिक्शा खींच रहा है!
5
ये रिक्शा ना उसका अपना है
अभी स्थगित ये सपना है-
पर धीरे-धीरे हो जाएगा
फिर पूरी कमाई खुद खाएगा
ना मालिक का कुछ देना होगा
शहर में घर एक लेना होगा
फिर ना मारेगा कोई सिपाही!
ना ताड़ेगा कोई दरोगा?
आह! मुट्ठी दोनों भींच रहा है
बन्दा रिक्शा खींच रहा है।

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