अलविदा सरबजीत -जयपाल

1

गंदले पानी को साफ करने का जिम्मा लिया था
सरबजीत ने
वह खंगाल रहा था पानी
मार रहा था हाथ-पैर
ताकि पानी हो जाए पूरी तरह साफ
वे लोग
जिन्हें गंदले पानी से डर लगता है
या वे
जो गंदले पानी में जीने को अभिशप्त हैं
सब देख लें अपना-अपना चेहरा
मिल कर सरबजीत के साथ
साफ पानी में साफ-साफ

2

एक पुल बनाने में लगा था सरबजीत
घास-फूंस लकड़ी-बांस का
वह चाहता था
घने कोहरे-धुंध और काली बर्फ से लदी
जहरीले तमस में लिपटी एक नदी को पार करना
हर कोई बचना चाहता है जिस नदी से वह उसी के किनारे
बैठकर
घास-फूंस लकड़ी जोड़ता रहा
किसी आदिवासी बाबा की तरह
उसी की इच्छा थी
कुछ लोग
उसके बनाए पुल से नदी पार कर जाएं
और फिर
खुद ही बना लें
अपने लिए अपना-अपना एक पुल
सरबजीत खुद नहीं जानता था
उसका पुल बनाना शुरू करते ही टूट जाएगा
पुल चाहे नहीं बना सका सरबजीत
लेकिन
पुल की निशानदेही तो कर ही गया।

3

सरबजीत
जितना उडऩा चाहता था
उतना लडऩा भी चाहता था
लेकिन
जिसके हिस्से का आसमान भी
गठरी में बांध कर
उसके सिर पर रख दिया जाए
वह कितना उड़ेगा
और कितना लड़ेगा।
फिर भी
वह उड़ता भी रहा
और लड़ता भी रहा
मुक्ति के लिए हर पल संघर्षरत
सरबजीत को कील दिया गया
महीनों दिनों और कुछ पलों के साथ
एक दिन जैसा कि तय था
निकल पड़ा सरबजीत
सरहद के उस पार
सरहद के इस ओर खड़ रहे
दोस्त-मित्र परिजन
हाथ बांधे
सिर झुकाए।
दूसरी तरफ
सरबजीत हटता गया पीछे-
और पीछे और आखिर में अदृश्य।
सब वापिस लौट आए
खाली हाथ
अपना सा मुंह लेकर और उसे भी एक-दूसरे से छिपाते हुए
मुड़ मुड़कर देखते हुए
बार-बार पीछे
शायद लौट आएं सरबजीत
पर नहीं आए
कोई भी नहीं आया आज तक
सरबजीत कैसे आ जाते।
लेकिन
जब-जब भी शब्दों की पंचायत बैठेगी
सरबजीत उसमें जरूर शामिल होंगे
एक सार्थक पदचाप के साथ।
साभार-जतन दिसम्बर 99

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