लेके रहेंगे-लेके रहेगे

एक बै जागरूक माच्छरां नै मिलकै एक सभा बुलाई-उनका नेता बोल्या-भाईयो! ‘हमारे साथ बड़ी बेइन्साफी हो रही है-जुल्म ढाए जा रहे हैं। देखो-साबुन के लिए साबुणदानी, मसालों के लिए मसालादानी’ चूहों के लिए चूहेदानी-परन्तु हमारी माच्छरदानी पर तो माणसां नै कब्जा कर राख्या सै। साथियो-उठो और कसम खाओ-माच्छरदानी में रहणे का हक लेकर रहांगे’ सभी श्रोता मच्छर भी नारे लगाने लगे-‘लेके रहेंगे-लेके रहेगे’।

More From Author

नव जागरण के अग्रदूत डॉ. ओ.पी. ग्रेवाल – ओमसिंह अशफाक

मानवीय मूल्यों के रक्षक भी थे कुछ लोग – उदयभानु हंस

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *