हम पढऩे-लिखने वालों की तो बात ही कुछ ओर है

तीन चूहे बड़े जिगरी यार थे। घणे दिनां में फेट्टे तो उनमें एक जुणसा मरियल था-न्यूं बोल्या अक् रै कड़ै रह्या करो-वे दोनों मोटे ताजे थे। उनमैै तै एक बोल्या-मैं तो भाई बड़े जमींदार कै रह्या करूं सूं-खाण की कोए कमी नी। दूसरा बोल्या-मैं एक दुकानदार के रहूं सूं ओड़ै सबक्यां की मौज सै। तूं बता कित रह्या करै जमाए मरण नै होर्या। वो न्यूं बोल्या भाई मैं तो मास्टर कै रह्या करूं सूं-जब भी देखूं मौका सा-जिबै ट्युसन पढ़ांदा पावै सै, अर वे बालक मेरै ए कान्ही लखांए जां सै।’ इतनै ए में एक बिल्ली आग्यी अर् दोनों मोटु चुहे दबोच लिए। मरियल तो भाज कै बड़ग्या बिल में अर दर आग्गै खड़ा होकै न्यूं बोल्या-हम पढऩे-लिखने वालों की तो बात ही कुछ ओर है।

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