संक्रात का दिन था। किसान नै सुण राख्या था अक् संक्रांत ने गरूड़ दीखज्या तो बड़ा आच्छा हो सै। उसने खेत मेें तै आंदे होए राही में एक भर्या होया गुरुड़ पा ग्या। वो उसने ठाकै अर खेश में लपेट कै चाल पडय़ा गाम कानी। गाम धोरै सी दो-तीन जणे खड़े बतलाण लागर्ये थे। वो उन धोरै जाकै न्यू बोल्या-भाई जै किसे नै संक्रांत के दिन गरूड़ दीख ज्या तो के होज्या। एक जणा न्यू बोल्या, अक् सीधा सुरग में जावै अर जै मर्या होया दीखज्या तो….। वें सारे एकदम बोल्ले- ‘उसका सत्यानाश हो ज्यावै’। सुणकै किसान ने झट दे सी बुक्कल खोल दी अर् न्यूं बोल्या- मेरा तो हो ये लिया फेर थाम भी के बस ल्योगे।
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