एक छिकमा एं कंजूस दुकानदार था। उसकी देखमदेख छोरा उसतै भी घणा मंजी होग्या। एक दिन दुकानदार सांझ नै आण की क्है कै शहर चला गया। दिन छिप गया। बाबु नहीं आया तो छोरा दुकानदार करकै घरा चल्या गया। घरा जायां पाच्छै उसकै याद आई अक् बिजली चसदी ए रहग्यी। ओ बंद करण खात्तर उल्टा ए चल दिया। न्यून तै दुकानदार भी शहर में आन्दा होया सीधा ए दुकान पै पहोंच ग्या। देख्या तो बिजली चसण लागर्यी था। ओ भीतर बड़कै सामान जचाण लागरया। उसने सोच्या बिजली का तो जुण सा खर्च होया सो होया। ईब ओ छोरा आवैगा, उसकी जुत्ती धसैंगी, यू और नुक्सान भुगतना पड़ैगा। इतनै ए म्हैं बाहर तै आवाज आई-भीत्तर कूण सै? बाबु नै बेटे की आवाज पिछाण ली अर बोल्या-रे तूं ईब के लेण आया सै? मैं बिजली बन्द करण आया सूं। या सुनकै दुकानदार बोल्या-रै बिजली नै तो छोड़ इन जुत्तियां की घिसाई का डण्ड कोण भरेगा? छोरा उसका भी किमे लाग्यै था-बोल्या-बाब्बु! घबरावै ना, जुत्ती हाथां म्हें ठार्या सूं।