रक्षाबंधन – सुभाष चंद्र कुशवाहा

सुभाष चंद्र कुशवाहा

रक्षासूत्र द्वारा मूल निवासी राजा बलि को धोखा दिया गया था . रक्षासूत्र का उक्त मन्त्र ठगी का जरिया है . रक्षा सूत्र बांधते समय पुरोहित अपने यजमान को कहता है कि जिस रक्षासूत्र से दानवों ( यहाँ दानव का मतलब उनके विरोधियों से था जो यहाँ के मूल निवासी थे ) के महापराक्रमी राजा बलि धर्म के बंधन में बांधे गए थे (अर्थात छले गए थे ), उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं . इसके बाद पुरोहित रक्षा सूत्र से कहता है कि हे रक्षे तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना ( जिससे कि मैं इसे छलता रहूँ ). 

आज रक्षाबंधन है।
अब समझदार लोग इसे भाई-बहन के त्योहार के रूप में मनाने लगे हैं मगर मुगलकाल के पूर्व तो विशुद्ध रूप से पुरोहित ही रक्षासूत्र बांधने और वसूली करने के त्यौहार के रूप में मनाता था।
मुझे 13-14 वर्ष की उम्र तक यही पता था कि पुरोहित द्वारा धागा बांधने और बदले में नेग वसूलने का पर्व है यह । आज भी कहीं न कहीं इसी रूप में यह विद्यमान है
मगर रक्षाबंधन का यथार्थ क्या है ?
‘येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल: तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल: माचल:.’ (अर्थात् जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था, उसी रक्षाबंधन से मैं तुम्हें बांधता हूं, जो तुम्हारी रक्षा करेगा. हे रक्षे!(रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो.)
रक्षासूत्र द्वारा मूल निवासी राजा बलि को धोखा दिया गया था . रक्षासूत्र का उक्त मन्त्र ठगी का जरिया है . रक्षा सूत्र बांधते समय पुरोहित अपने यजमान को कहता है कि जिस रक्षासूत्र से दानवों ( यहाँ दानव का मतलब उनके विरोधियों से था जो यहाँ के मूल निवासी थे ) के महापराक्रमी राजा बलि धर्म के बंधन में बांधे गए थे (अर्थात छले गए थे ), उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं . इसके बाद पुरोहित रक्षा सूत्र से कहता है कि हे रक्षे तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना ( जिससे कि मैं इसे छलता रहूँ ).
पौराणिक प्रसंग है कि- एक बार दानवों अर्थात यहाँ के मूल निवासियों और देवताओं में युद्ध शुरू हुआ. दानव, देवताओं पर भारी पड़ने लगे तब इन्द्र घबराकर वृहस्पतिदेव के पास गए. वहां बैठी इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने रेशम का धागा अपने पति के हाथ पर बांध दिया. कथा है कि इंद्र इस लड़ाई में इसी धागे से विजयी हुए थे. उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बांधने की प्रथा चली आ रही है.
इसके अलावा स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में रक्षाबन्धन का प्रसंग मिलता है. कथा इस प्रकार है- दानवेन्द्र राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की. तब भगवान ने वामन अवतार लेकर ब्राम्हण का वेष धारण कर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंचे. गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी. भगवान ने तीन पग में सारा आकाश, पाताल और धरती नाप कर राजा बलि को रसातल (अर्थात अन्य देश ) में भेज दिया. इस प्रकार भगवान विष्णु द्वारा बलि राजा को धोखे से छला गया . इसी कारण यह त्योहार ‘बलेव’ नाम से भी प्रसिद्ध है. कहा जाता है कि जब बलि रसातल ( अन्य देश ) चले गये तब भी अपने तप (ताकत से ) से भगवान को रात- दिन अपने पास रहने का वचन ले लिया (अर्थात भगवन को बंधक बना लिया ) . भगवान विष्णु के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मी जी को देवर्षि नारद ने एक उपाय सुझाया. नारद के उस उपाय का पालन करते हुए लक्ष्मी जी राजा बलि के पास गई और उन्हें राखी बांधकर अपना भाई बना लिया. उसके बाद अपने पति भगवान विष्णु और बलि को अपने साथ लेकर वापस स्वर्ग लोक (अपने देश ) चली गईं.
इसलिए बहनों से रक्षासूत्र बंधवा लेना तो चलेगा मगर उक्त मन्त्र द्वारा पुरोहित से ???

साभार  सुभाष चंद्र कुशवाहा की फेसबुक से

Leave a reply

Loading Next Post...
Sign In/Sign Up Sidebar Search Add a link / post
Popular Now
Loading

Signing-in 3 seconds...

Signing-up 3 seconds...