ग़ज़ल
बहुत कुछ था तेरे आने से पहले,
मगर मंज़र1 थे वीराने से पहले,
लगा करते जो बेगाने से पहले,
वो अपने बन गये जाने से पहले।
मेरा महफ़िल में था इक ख़ास रुतबा,
तेरी नज़रों से गिर जाने से पहले।
कशिश कुछ और ही थी, जि़न्दगी में,
ये दिल के ज़ख़्म भर जाने से पहले।
अंधेरों की सियासत2 भी समझ लो,
उजाले ढूँढ कर लाने से पहले।
हिसाब अपने, सितम का भी तो कर लो,
ये अहसानात गिनवाने से पहले।
किसी दिन तो मिरी रूदादे-ग़म3 भी,
सुनाओ अपने अफ़साने से पहले।
हमारी बात पर भी ग़ौर कर लो,
तुम अपनी बात मनवाने से पहले।
कहाँ थी इतनी रौनक़ पहले ‘राठी’
तिरे इस शहर में आने से पहले।
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- दृश्य 2. राजनीति 3. दु:ख की कहानी